गोय्ठे में भुनते मकई के चन्द दाने ,
सुनहरे ख़्वाबों की तरह पक रहे थे ,
धीरे धीरे मानो पूरी रात तक जगाके रखना है l
पास बैठा मोती ठण्ड से कुन्ह्ड़ता जा रहा था ,
कमबख्त इस रात को भी आज ही सर्द होना था l
धुन्ध सी छा रक्खी थी चारो तरफ ,
मानो कल सूरज के देर से आने का सन्देशा हो ,
गोय्ठे की आग से जंग अब तक जारी थी l
एक ने ना जलने की कसम रक्खी थी तो मानो दूसरे ने जलाने की ,
सफ़ेद पजामे का निचला कोना अब तक धूल से सना था ,
पर फिर भी आज क्रिकेट के खेल में अविजित रहने का एहसास इसपे भारी था l
इक्का दुक्का कुछ आवाजें शान्ति का चीड हरण कर रही थी ,
"अरे हो मरदे कन्ने गेला" शायद इसी टाइप की l
पास पड़ा रेडियो भूले बिसरे गीतों को याद दिलाने के अथक प्रयास में था ,
माचिस की तीली को कानो में डाले मैं भुट्टे को देख रहा था ,
फट फट की आवाज़ से पता चल रहा था ,
अब जल्द ही इसे मेरे मुँह के अन्दर होना है l
समझदार मोती की आवाज़ से मैंने भुट्टे को जलने से पहले निकाल लिया,
जब तक मैंने उसे बिलकूल आधा आधा नहीं किया वो मुझे घूरता ही जा रहा था ,
हर कोई अब समझदार हो चला है l
सर्द हवाओं ने अब पेशानियों में घुसना शुरू कर दिया था ,
मोती के लिए बोरा और मेरे लिए रजाई इंतज़ार कर रहे थे ,
उसे सुलाकर मैं भी बढ़ चला अपने कमरे की तरफ अलसाया सा ,
सर्द रात के अब कफ़न और मेरे रजाई ओढने का वक़्त हो चला था l
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