Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हाल ऐ दिल

 

यों मुझे शक से ना देखा कर तेरी गली आना हमने कब का छोड़ दिया ,

जबसे खुद साकी हुआ है पडोसी हमने तो मयखाने तक को छोड़ दिया ll


बहती हवाओं तक का रुख मोड़ने की कुरवत रखते थे हम तो पहले ,

रहने लगी है जब से माँ बीमार हमने तो परदेस जाना ही छोड़ दिया ll


लबों को सिल के भी पढ़ते थे तेरी मोहब्बत की आयतों को ऐ सनम ,

जब से हुई हैं नजरें कमजोर तेरी आँखों से उलझना तक छोड़ दिया ll


समन्दरों की कहाँ थी इतनी औकात कि हमें डुबोने तक को सोचता ,

जब से हारी तेरे प्यार की बाज़ी खुद को सिकंदर कहलाना छोड़ दिया ll


सहराओं की तपिश का गुमान था दोस्ती सूरज से जो थी अपनी "परिमल" ,

जब से सुनी भूखे बच्चों की रुदन खुद की अमीरी पे इठलाना छोड़ दिया ll


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