Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आज मैं अपनी यादो को खंगाल रहा हु

 

आज मैं अपनी यादो को खंगाल रहा हु
दिल में चुभे कुछ निश्तर निकल रहा हु


उनके ख्याल को जहन से मिटने खातिर
जिसम से अब अपने ज़ा निकाल रहा हु


पलकों को खुली रखने की ख्वाहिश में
आँखों से अब अपने आंसू निकाल रहा हु


उनसे मिलने के केवल इंतजार में
धीरे से अपनी अब क़ज़ा संभाल रहा हु

 


निश्तर = तीर
क़ज़ा =मौत

 

परीक्षित 'अंतिम अन्नंत

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ