आज मैं अपनी यादो को खंगाल रहा हु
दिल में चुभे कुछ निश्तर निकल रहा हु
उनके ख्याल को जहन से मिटने खातिर
जिसम से अब अपने ज़ा निकाल रहा हु
पलकों को खुली रखने की ख्वाहिश में
आँखों से अब अपने आंसू निकाल रहा हु
उनसे मिलने के केवल इंतजार में
धीरे से अपनी अब क़ज़ा संभाल रहा हु
निश्तर = तीर
क़ज़ा =मौत
परीक्षित 'अंतिम अन्नंत
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