Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इश्क के धागों के लिए दिल के सुराख़ महीन निकले

 

इश्क के धागों के लिए दिल के सुराख़ महीन निकले
वो जब भी मेरे घर से निकले बड़े ग़मगीन निकले

 

दिल में जगहा बना के शिदत से था हमें बैठाया
हम तो मगर बस इक और पेने संगीन निकले

 

कहते थे की हमसे करेंगे वो मोहब्बत मौत तक
हमें बस रहा इंतजार की कब उनका दम निकले

 

रो रो कर भी दुआए ही दिया करते थे वो सदा
तभी तो कैसे अब रूह से ये मेरी गम निकले

 

परीक्षित 'अंतिम अन्नंत

 

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