Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रिश्ते सिले नहीं बुने जाते है

 

रिश्ते सिले नहीं बुने जाते है
ख्वाब देखे नहीं जिए जाते है

 

पहाड़ो से बादल टकराते तो है रोज़
कभी बरसते है कभी चले जाते है

 

आमद खुशियों की धीमी हो जब
गम भी मुस्कुराकर सहे जाते है

 

जिन नारों को आवाम न दे आवाज
वही दीवारों पर यहाँ लिखे जाते है

 

 

परीक्षित पारीक 'निशात'

 

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