गौरैया तेरे नख़रे भी नखराले हैं
जिनके हम मतवाले हैं
जितना पास बुलाते तुमको
उतना दूर चली जाती हो
जो ना देखा पलभर तुमको
तुम कितना शोर मचाती हो।।
दाना पानी देकर तुमको,
काबू कितना करना चाहा
पर तुम तो बहुत सयानी हो
अपने मन की रानी हो
पानी पीकर दाना ले गयी
अब कितना हमें चिढ़ाती हो।।
तिनका तिनका चुन-चुनकर
तुम कहाँ-कहाँ से लाती हो
इतना काम करती आख़िर
क्या हमको बतलाती हो
सारा घर तो अपना ही है
फिर खुद क्यों महल बनाती हो।।
साँझ-सबेरे बता दो मुझको
ये तुम कोनसा गीत सुनाती हो
सुनकर जिसको सूरज उगता
और रातें ये सो जाती हैं
जो मीठे गीत सुने तुम्हारे
मेरी दुनिया क्यों खो जाती है।।
क्यूँ रूठ गई हो तुम मुझसे
बोलो तो नखराली चिड़िया
कविता मे तो आ गईं तुम
क्यों अब आँगन मे ना आती हो
माफ़ करो और आ भी जाओ
अरे तुम इतना क्यों सताती हो।।
पवन प्रभाकर
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