धर्म-धर्म कहते सभी,सही न समझें अर्थ।
इसकी लेकर आड़ बस,करते फिरें अनर्थ॥1॥
अलग-अलग राहेँ मगर,सबकी मंजिल एक।
भारत में बिखरे मिलें,'पूतू' धर्म अनेक॥2॥
सच्चा मानव धर्म है,जिसका नहीं जवाब।
जहर हृदय में घोलकर,हालत करें खराब॥3॥
बदल चुका सबकुछ मगर,बदला नहीं स्वभाव।
वैसे देते आ रहें,प्रतिदिन नूतन घाव॥4॥
राजनीति जो खेलती,बड़ा भयानक खेल।
भाईचारा फूँकती,डाल घृणा का तेल॥5॥
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
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