सुनामी आई,
जर्मनी कहें जिसे,
ब्राजील बहा।
नेमार बिना,
ब्राजील अनाथ सा,
देखे जीत को।
अंतर बड़ा,
टीमों के बीच रहा,
सात-एक का।
सूखे पत्तों सा,
ताबड़ तोड़ हुई,
गोलों की वर्षा।
अश्क की नदी,
बह चली आँखों से,
निराश फैन।
मौका-ए-जश्न,
संपूर्ण जर्मनी में,
खुश जर्मन।
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
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