Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हाइकु रक्षाबंधन पर

 

आँखे सजल,
कलाई सूनी-सूनी,
दूर बहन।

 

 

रोकर सोई,
इंतजार करके,
बहन हारी।

 

 

मैं हॉस्टल में,
बहन मेरी घर,
दूरी बहुत।

 

 

काश!पंख हो,
उड़के बँधा आता,
मैं भी राखी।

 

 

माँ ने बताया,
अभी-अभी बहन,
रोकर सोई।

 

 

प्रेम की गंध,
पिछले वर्ष की है,
रक्षाबंधन।

 

 

 

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ