समग्रता का दूसरा नाम साहित्य है।साहित्य अखंडता का प्रतीक है।साहित्य
विविधता में एकता स्थापित करता है।साहित्य में संदेश परकता प्रमुख एवं
अनिवार्य तत्व है।बिना इसके साहित्य साहित्य न होकर दिल बहलावे का साधन
मात्र रह जाता है।इस प्रकार के निकृष्ट साहित्य से बेहतर किसी बहुरूपिए
द्वारा कही गईं उक्तियाँ हैं।साहित्य सोद्देश्य होना चाहिए।जो मानक
साहित्य सृजित हो रहा है उसकी पहुँच जन-जन तक हो इसके लिए अनेक
पत्र-पत्रिकाएँ 19वीं सदी से आज तक प्रकाशित हो रही हैं,जो समाज एवं
साहित्य के मध्य कड़ी हैं।इनमें पत्रिकाओं का प्रशंसनीय योगदान रहा है।
वर्तमान युग पत्रिकाओं के प्रकाशन की दृष्टि से बहुत ही समृद्ध है।भारतीय
साहित्य के लिए यह सुखद विषय है कि आज उसका प्रचार-प्रसार द्रुतगामी
है।समकालीन कई पत्रिकाओं का मैं नियमित पाठक एवं रचनात्मक सहयोगी
हूँ,परंतु 'अखंड भारत' जैसी पत्रिका आज तक नहीं मिली थी।यह एक त्रैमासिक
पत्रिका है जिसका दूसरा अंक मुझे प्राप्त हुआ,'रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक
है।जिसके संपादक श्री अरविंद योगी जी बधाई एवं नमन के पात्र
हैं।जिन्होंने अपने नाम के अनुसार विभिन्न स्तरों पर योग का सुंदर उदाहरण
प्रस्तुत किया है।योग का अर्थ संबद्ध (जोड़ना) करना होता है,इस पत्रिका
में प्रसिद्ध से गुमनाम की संबद्धता,नारी से नर की संबद्धता,चित्र से
शब्द की संबद्धता,नवीन काव्य विधाओं से प्राचीन काव्य विधाओं की संबद्धता
परिलक्षित हो रही है।इसमें भारत की अखंडता इसी में झलकती है कि विभिन्न
प्रांतों के विभिन्न जनपदोँ के 67रचनाकारों की रचनाएँ संकलित हैं;जिसमें
गद्य की तुलना में पद्य की बहुलता है।
'अखंड भारत' की सबसे बड़ी विशेषता इसके अंक का रानी लक्ष्मीबाई पर
केन्द्रित होना है।आज जब नारी अस्मिता पर खतरा मँडरा रहा है,ऐसा कोई दिन
नहीं गुजरता जब नारी की चीख-कराह न निकले।अब चाहे वह घर की चारदीवारी में
घुटकर रह जाए या अखबारों की सुर्खियाँ बनें।दूसरी इसकी महत्वपूर्ण एवं
सबसे अलग करने वाली विशेषता विज्ञापन रहित होना है।जो संपादक का साहित्य
के प्रति शुद्ध समर्पण भाव दर्शाता है।हमारी आजादी रूपी खूबसूरत महल
क्रांतिकारियों के त्याग-बलिदान एवं शौर्य की फौलादी नींव पर टिकी है।जो
अपने प्राण तक देने में भी रंच मात्र नहीं झिझके थे।'भूल न जाओ उनको
इसलिए सुनो यह कहानी' की तरह भाई अरविंद जी जन-जन तक पहुँचा रहे हैं
क्रांतिकारियों के विचार एवं जीवन गाथाएं,जो स्तुत्य है।
इस पत्रिका में जिन रचनाकारों की रचनाएँ शामिल हैं उनमें वर्तमान साहित्य
के सर्वश्रेष्ठ ग़ज़लकार,गीतकार एवं उनके बाद की पीढ़ी के लगभग सभी ग़ज़लकारोँ
के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष गुरु डॉ.कुँअर 'बेचैन' जी,जो इन खूबियों के
बावजूद नेक दिल एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी भी हैं।इसके साथ ही उनकी
सहधर्मिणी श्रीमती संतोष कुँअर 'बेचैन' जी।इनके अतिरिक्त जिनकी रचनाएँ
हृदय को स्पर्श करती हैं उनमें समोद सिंह 'चरौरा' जी,केदारनाथ जी,निशि
शर्मा 'जिज्ञासु' जी,तूलिका सेठ जी,डॉ.माँ समता जी,कुसुम शर्मा जी,सुषमा
भंडारी जी,पूनम माटिया 'पूनम' जी,प्रीति अज्ञात जी,डॉ.लालित लालित्य
जी,दीपक शुक्ला जी,रुचि भल्ला जी,ममता लड़िवाल जी,डॉ.राजीव जी प्रमुख
हैं।इस अंक में गीत,कविता,छंद,हाइकु,साक्षात्कार आदि कई विधाओं की रचनाएँ
हैं जिनका विषय केवल रानी लक्ष्मीबाई एवं नारी जीवन का शब्द चित्रण
करना।इसमें सोने में सुहागे का काम किया बहन छाया पटेल की रंगीन जादूगरी
ने।कहते हैं कि एक चित्र हजार शब्दों से बेहतर होता है।इसका सशक्त उदाहरण
सम्पूर्ण पत्रिका में छाए छाया के चित्र हैं जो नारी जीवन के विभिन्न
भावों को उकेरकर पत्रिका को जीवंत बना रहे हैं।
'अखंड भारत' पत्रिका का यह अंक पढ़ने के बाद मैं समझता हूँ अगले अंक का
पाठक बेसब्री से इंतजार करेंगे क्योंकि इसमें राष्ट्रभक्ति कूट-कूटकर भरी
है और राष्ट्रकवि गुप्त जी के शब्दों में प्रत्येक धड़कते हृदय में स्वदेश
प्रेम जरूरी है-
"भरा नहीं जो भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं॥"
इस धारा को प्रवाहित करने का भगीरथी प्रयास कर रहे हैं भाई योगी जी।अब
जरूरत है हमें तन-मन-धन से इन भावों से सहयोग करने की कि 'वंदना के इन
स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो।'
राष्ट्रकवि दिनकर जी ने अपनी कलम से उनका जयकार करने को कहा था जिन्होंने
अपनी अस्थियां जलाकर चिनगारी बिखेरीँ, जो बेमोल फाँसी पर झूल गए।मुझे ऐसा
आभास हो रहा है कि अगर 'अखंड भारत' का कारवाँ ऐसे ही आगे बढ़ता रहा तो वह
दिन दूर नहीं जब भारत का प्रत्येक नागरिक कहेगा-'कलम आज उनकी जय बोली।'
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY