Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खोल दो खिड़की हवा आने दो

 

खोल दो खिड़की हवा आने दो।
बंद कमरे को महक जाने दो।

 

जाल में फँसना बड़ा मुश्किल है,
मछलियों को तुम कसम खाने दो।1

 

तीरगी शायद मिटाने आया,
राग दीपक तो जरा गाने दो।2

 

मौसमे-पतझड़ बदल जाएगा,
खूबसूरत सी घटा छाने दो। 3

 

भूल जाएगा अदब करना वो,
सिर्फ दो दिन को शहर जाने दो।4

 

पैर में लिपटे रहें, माँगें भी,
फिर न बोले कुर्सियाँ पाने दो।

 

साफ होगा दिल तुरत 'पूतू'
अश्क आँखों से निकल जाने दो।

 

 

 

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

 

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