दोस्त बनाकर दर्द को,जीना लूँगा सीख।
लेकिन चाहूँगा नहीं,कभी तुम्हारी भीख।
कभी तुम्हारी भीख,रखो अपनी धन दौलत।
पता नहीं अनुभूति,भाव की करे तिजारत।
कह 'पूतू' कविराय,किसी को नहीं सुनाया।
चैन मिला जो खूब,दर्द को दोस्त बनाया॥
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
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