हंसती हूँ जब
तो ,,सुख कहते हैं
हम तो बस तेरे मन
में रहते हैं ..
तुम्ही रही उलझी
दुःख पीड़ा के
चक्रव्यूह में
और रही गुमसुम
अपने ही रचे व्यूह में
करती रही अनदेखा
ना खोजा मन
ना टटोला ..
कि हम बन के
तेरा प्रतिबिम्ब
तेरा हास ,,रंग ,ख़ुशी
अंतर्मन में ही तो रहते हैं
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