Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रिश्ते

 

पापा मैं साक्षी के साथ नहीं रह सकता....... मुझे उससे तलाक चाहिए पापा........। अपने कमरे से चीखता हुआ राजेश मेरे कमरे में आकर मेरे सामने खड़ा था।

क्यों, क्या हुआ राजेश........ बेटा तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो और इस बात का क्या अर्थ है.... नहीं राजेश नहीं...... मेंैने तुम्हें पहले भी सिखाया है बेटा कभी कोई ऐसी बात मत कहो जिसे कहने के बाद आपको पछताना पडे़। मैंने उसे शांत करने का प्रयास किया था।

पापा पछताना तो उसे चाहिए जिसने नीचता से भी नीच काम किया है..... पापा मैं नहीं जानता था कि साक्षी ऐसी होगी।

कैसी है साक्षी बेटा।

नीच और गिरी हुई।

आप जानते भी हैं आप क्या कह रहे हैं और किसके बारे में कह रहे है!

जानता हूं पापा, मैं सब जानता हूॅ।ं मैं अपनी पत्नी के बारे में कह रहा हूं। राजेश का गुस्सा सातवें आसमान पर था। मैं उसे जितना ही समझाने का प्रयत्न करता वह उतना ही और क्रोधित हो रहा था। मुझे जब कोई उपाय नहीं सूझा तो मैंने साक्षाी को आवाज दी थी, बेटा साक्षी ..... यहां आओ मेरे पास।

जी पापा, कहते हुए कुछ ही पलों में साक्षी मेरे पास खड़ी थी अपराधी की मानिन्द।

राजेश साक्षी को देखकर फिर आग बबूला हुआ जा रहा था, पापा इससे कहो यह अभी.... इसी वक्त यहां से चली जाए।

कहाॅं

अपने पापा के घर

मैं भी तो इसका पापा हूं।

आप इस जैसी गिरी हुई औरत के पापा नहीं हो सकते...... आप इसके कोई नहीं हैं।

नहीं राजेश नहीं तुम अभी गुस्से में हो मुझे साक्षी से बात करने दो। फिर न जाने मुझे क्या हुआ था। मैं राजेश की ओर मुड़ कर बोला था तुम बताओ राजेश ..... मैं तुमसे पहले पूछता हूं। जिस लड़की के लिए आप पागल हुए जा रहे थे आज उसी को घर से निकाल रहे हो। उससे तलाक चाहते हो..... रह पाओगे उसके बगैर ....... एक पल भी।

एक पल तो क्या मैं जीवन भर इसके बिना रहना चाहता हूं........... आप इसे यहां से भगा दो नही ंतो मैं इसका कत्ल कर दूंगा... पापा प्लीज। पापा मेरी परीक्षा मत लो। राजेश का गुस्सा देखकर एक बार तो मैं भी सकपका गया था। फिर मैंने साक्षी को अपने पास बैठाते हुए कहा था, मेरी लाडली बेटी.....।

पापा इसे बेटी मत कहो..... ये तो आपकी बहू भी कहलाने लायक नहीं है।

राजेश अपनी सीमाओं में रहो। बहुत कर ली तुमने अपनी बक बक... मैं साक्षी से बात कर रहा हूं। इस बीच तुम अगर बीच में बोले तो देख लेना ..... मैं भूल जाऊंगा कि तुम मेरे इकलौते बेटे हो। .....नाउ... यू.... प्लीज। मेरा गुस्सा देखकर राजेश डर गया था और चुप हो गया था।

साक्षी मेरे पास ही सोफे पर बैठ गई थी। सिर झुकाए मानो कोई हार गया हो जिंदगी की जंग में।

लाड़ो आखिर ऐसा क्या हुआ तुम दोनों में जो राजेश इतना गुस्सा हो रहा है.... ऐसा क्या कर दिया मेरी बच्ची तुमने जो यहां तक की नौबत आ गई.... बताओ...... बोलो बेटा... बोलो।

...........पापा ........... बस इतना ही निकला था साक्षी के मुंह से और वह हरहराकर मेरे गोद में ढह गई थी। ससुर-बहू की दीवारें धराशाही हो गई थीं। वह बिलख-बिलख कर रो रही थी। आंसुओं का सैलाब सारी दीवारें तोड़कर सबकुछ बहा ले जाना चाहता था।

नहीं.............. नहीं........... न .............. नो......... ने नाॅट ................. रोएगी नहीं मेरी बच्ची रोएगी नहीं..................... मुझे बताओ.............. मैं सुनूंगा तुम्हारी बात...... फिर न जाने कब होंठ बजे थे, आज तुम्हारी सासु होती तो तुम उन्हें बताती लेकिन वो तो.............. अनायास ही मुझे राजेश्वरी याद आ गई थी। आंखें भर आयी थी मेरी। लेकिन साक्षी वह तो सिर्फ पापा से आगे नहीं बढ़ रही था। मैंने राजेश को इशारा करके अपने दूसरी ओर बैठने को कहा था। वह बैठ गया था। मेरे एक ओर राजेश ओर दूसरी ओर साक्षी। साक्षी मेरी गोद में सिर छिपाए और राजेश आग पर कूदता हुआ। फिर मैंने राजेश की ओर देखा था मानो कहना चाह रहा था, बताओ राजेश तुम्ही बताओ आखिर हुआ क्या है।

पापा साक्षी बदचलन है।................... पापी है..... इसने मेरे साथ धोखा किया है.... पापा इसने मेरे प्यार को धोखा दिया है.... इसने मेरी भावनाओं के साथ खेला है। ..................... भगवान इसे कभी माॅं.............फ। मैंने राजेश के मुॅंह पर हाथ रख दिया था। नहीं बेटा नहीं.................... ऐसी बद्दुआएं तो आदमी दुश्मन को भी नहीं देता।

काश ये मेरी दुश्मन होती पापा। मैंने देखा राजेश के इतना कहने पर भी साक्षी ने राजेश का विरोध नहीं किया था जिसका सीधा अर्थ यही था जो बात राजेश कह रहा है वह सच हैं फिर भी मैंने साक्षी के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा था, कह दो बहू ये सब झूठ है। राजेश झूठ बोल रहा है। न जाने क्यों बड़ी देर से

अपनी बहू साक्षी को बेटी, लाडो और बच्ची कहते कहते अनायास ही मैं बहू बोल गया था। मुझे लगने लगा था शायद राजेश सही है।

बहू कुछ नहीं बोली थी।

झूठ नहीं पापा............... ये............... ये............. साक्षी.................ये प्रिगनेंट है..................... इसके पेट में किसी और का बच्चा है................ और ये बच्चा इसके पेट में तब भी था जब इसने मेरे साथ सात फेरे लिए थे पापा.......... इसने............... पापा ये............... पापा। और इतना कहते कहते ................. राजेश ने अपना माथा पकड़ लिया था। उसे देखकर लग रहा था मानो कोई जुआरी अपना सर्वस्व दाॅव पर लगा चुकने के बाद हार गया हो।

फिर भी अपने आपको धोखा देने के लिए मेैेंने साक्षी का सिर अपनी गोद से धीरे से उठाया था। उसकी आॅंखें लाल थी जिनमें अपराध की स्वीकारोक्ति थी। पश्चाताप था। प्रायश्चित था।

तुमने राजेश को धोखा क्यों दिया बहू। सीधा सपाट सा प्रश्न तीर के सदृश मैंने साक्षी के माथे पर छोड़ दिया था।

साक्षी आॅंखें ऊपर किए मुझे टकटकी लगाए देखती रही थी। बोली कुछ नहीं थी।

जानती हो तुमने किसे धोखा दिया है..... राजेश को............... कितना प्यार करता है वह तुम्हें............. तुमसे शादी करने के लिए मेरे सामने कितना गिड़गिड़ाया था.......... नहीं, साक्षी नहीं........... तुमने अपने प्यार को ही नहीं........मुझ जैसे ...........ं। मैं इसके आगे कहां बोल पाया था। आंखें छलछलाने लगी थीं। राजेश ने मेरी आंखों पर हाथ रख दिए थे औेर ठीक उसी समय साक्षी ने भी मेरी आॅंखों से आॅंसू पौंछने का प्रयास किया था। मेरी आॅंखों पर दोनों के ही हाथ टकराए थे। फिर न जाने क्यों राजेश ने साक्षी के हाथ झटक दिए थे। मेरे पापा को तूने रूलाया हैे भगवान तुझे.................।

नहीं .............. नहीं.............. बेटा................ नहीं बाबू ऐसे नहीं..................... कहते हुए मैंने साक्षी का हाथ भी पकड़ लिया था, साक्षी मेरी बहू है। मेरी इज्जत है.... और फिर पागल तुम दोनों के अलावा मेरा कौन है इस दुनिया में। बेटा मुझे बताओ आखिर क्यों किया तुमने ये सब। मैं जान लेना चाहता था कि कहीं कोई कहानी फिर तो नहीं दोहरायी गई है।

पापा मैं बताता हूॅं। इसके मामा के लड़के ने इसके साथ..................। राजेश पूरी बात बताना चाहता था। मैंने उसे रोक दिया था।

कहीं मामा का तो कहीं बुआ का लड़का.... ये क्या हो गया है रिश्तों को। इनका अर्थ क्यों समाप्त सा होने लगा है। मैं ये सब कब बोला था मुझे पता नहीं चला था। तभी तो राजेश कहने लगा था, पापा आप समझ नहीं पाए वह लड़का इसके मामा का था जिसके साथ ये..................

हां राजेश हां..................। फिर मैंने अपने आपको संयमित करते हुए बोला था, मैं बताऊं राजेश इसमें साक्षी की कोई गलती नहीं है। सारी गलती इसके ममेरे भाई की रही होगी। ये उसके घर गई होगी और उसने इसके साथ मौका पाकर................।

पापा आप कैसे जानते हैं। बहुत देर से धधक रहा ज्वालामुखी अब फट पड़ा था साक्षी के होंठ बजे थे।

बस ऐसे ही बेटा। मेरे इतना कहते ही दोनों मेरे मुंह की ओर देखने लगे थे।

लेकिन पापा यदि साक्षी मुझे शादी से पहले सब कुछ सच सच बता देती तो मैं इसे ................. पापा मैं इसे और जयादा प्यार करता पापा...............। बेटा अब कुछ मुलायम पड़ने लगा था।

तब तुम इससे शादी नहीं करते।

पापा मैं तब भी करता

नहीं राजेश.............. साक्षी ने जो किया शायद ठीक ही किया। उसे अपने आप पर विश्वास था तुम पर विश्वास था लेकिन परिस्थितियों पर वह कैसे विश्वास करती। तुम्हारे एक बार सिर हिला देने से वह तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए खो देती और वह तुम्हें किसी भी परिस्थिति में खोना नहीं चाहती थी। लेकिन हां उसने गलती की अगर वह तुम्हें सच बता देती तो आज उसे नीचे नहीं देखना पड़ता। नजरें चुरानी नहीं पड़ती। कम से कम अपनी नजरों ये तो नहीं गिरती............. साक्षी तुम्हें अपने प्यार पर विश्वास करना चाहिए था। साक्षी एक बार विश्वास टूटा तो जीवन में कभी भी पाया नहीं जा सकता। खैर जो हुआ उसे सपना समझकर भूल जाओ दोनों और जीवन जीने की कोशिश करो।

नहीं, पापा नहीं। इस औरत के साथ, इसके साथ तो मैं कभी भी न रहूं। चाहे मेरी जान ही निकल जाए.... पापा मैं कैसे सो पाऊंगा इसके साथ।

ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारा पापा तुम्हारी मां के साथ सोता रहा था। मेरे इतना कहते ही दोनों को झटका लगा था। दोनों खड़े हो गए थे।

क्या, दोनांे एक साथ बोले थे।

हां मेरे बच्चों हां.... यही सच है... मेरी पत्नी ................. राजेश की मां.....तुम्हारी सासु............... आज वह इस दुनिया में नहीं है............... लेकिन.............. । कहते कहते मेरा गला भर आया था। आंखें बरसने लगी थी।

फिर न जाने स्वयं को नियंत्रित करके बोलने की कोशिश की भी लेकिन बोल नहीं पाया था। बेटे ने रोक दिया था, पापा............. मम्माी भी।

हां तुम्हारी मां भी।

आपने कभी बताया नहीं पापा

कैसे बताता......... डर था मन में.............ये ठीक वही डर जो साक्षी के मन में तुमसे शादी के पूर्व था कहीं तुम अपनी मां से नफरत न करने लगो।.............. तुम्हारी मां ............. सचमुच बहुत अच्छी थी।

क्या हुआ था पापा अब साक्षी सहज हो फिर बोलना चाही थी और मेरे पास पुनः बैठ गई थी। राजेश भी बैठ गया था।

मेरा परिवार बहुत गरीब था.............. रात को खाया तो दिन को नहीं............... और दिन को खाया तो रात को नहीं..............।

ये तो आपने कई बार बताया है।

तो सुनो तो

जी पापा

उस सब में मेहनत और ईमानदारी हमारे पास पूरी की पूरी थी। पिता मेहनत करते........... मां सहेजती............. और मुझे पढ़ाती.............. लिखाती............. मैं मेहनत से पढ़ता गया। हाई स्कूल से इण्टरमीडिएट को लांघता हुआ बी ए फिर एम ए.......... करता गया और देखते ही देखते मेरी नौकरी लग गई थी। मैं बताता जा रहा था और साक्षी राजेश दोनों टकटकी लगाए मेरे चेहरे की ओर ताकते चले जा रहे थे।

मेरी नौकरी लगी तो मां और पिता के पैर जमीन पर नहीं पड रहे थे कि मां बोली थी, ‘लला की शादी कर देते। अनपढ मां के लिए बेटे की शादी से बढ़कर और क्या हो सकता था।

ठीक है। पिता मां की हर बात में हां करते थे। कुछ ही दिनों बाद तहसीलदार की बेटी से मेरी शादी हो गयी थी। तुम्हारी मां बेहद सुदर थी। उसे पाकर मां और पिताजी खुशी से पागल हुए जा रहे थे। पिता का रूतबा पूरे गांव में बढ़ गया था।

शादी की पहली ही रात..... नहीं .............. नही.............. पहली नहीं शादी के चैथे दिन तुम्हारी मां ने मुझे बताया था। मैं अपनी जीवन व्यथा अपने बच्चों को बता रहा था कि दोनों एक साथ बोले थे, क्या।

यही कि वह गर्भवती है।

उसके इतना कहते ही मैं तो पागल हो गया था ठीक वैसे ही जैसे अभी थोड़ी देर पहले राजेश हो गया था।

पापा में अभी भी गुस्से में हूं।

मेरी पूरी बात सुन लो फिर जो उचित लगे करना। मेरे इतना कहते ही राजेश चुप हो गया था और मेरी बात ध्यान लगाकर सुनने लगा था।

हम दोनों साथ साथ बैठे थे कि बोली थी राजेश्वरी, आपसे एक बात कहनी थी।

एक क्यों एक हजार कहो।

एक बात जो मेरे घर के लोगों ने आपको नहीं बताई...........’ मैं बताना चाहती हूं। न जाने कितना बड़ा विश्वास था उनका मुझ पर।

ऐसी क्या बात है।

मैं प्रिगनेंट हूं।

उनके इतना कहते ही सारा ब्रहमाण्ड मेरे सिर पर घूमने लगाथा।

अभी तो हमारी शादी का चैथा दिन है ही आप जानती हैं आप क्या कह रही हैं।

जानती हूं मैं और मैं यह भी जानती हूं कि इतना सुनने के बाद कोई भी पति अपनी पत्नी के साथ नहीं रहना चाहेगा। आप चाहें तो मुझे छोड़ सकते हैं। घर से निकाल सकते हैं। मै आपको नहीं रोकूूंगी। कहा था तुम्हारी मां ने।

लेकिन तुमने ऐसा क्यों किया। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था। तुम चाहती तो मुझे बता भी सकती थी जब हम लोगों को हमारे घर वालों ने अकेला छोड़ा था तब। मैंने राजेश्वरी से कहा तो वह बोली थी।

मुझे मेरे घर वालों ने मना किया था। मैं सब कुछ बता देना चाहती थी। और मैं अच्छी तरह जानती थी कि फिर मेरी शादी आपसे नहीं होती। मैं आपको एक बात और बता दूॅं मैं आपसे प्यार नहीं करती थी। प्यार तो उसी से करती थी। लेकिन उसने......... खैर............सब कुछ बता देना चाहती थी तुम्हारी मां तभी मैं बीच में ही बोल पड़ा था।

कौन था वह जिसे आप प्यार करती थीं और उसी का प्यार आपके..........। अभी मैं पूरी बात कह भी नहीं पाया कि वे बोली थी।

पेट में है

जी

मेरी बुआ का लड़का। मैं उसे बहुत प्यार करती थी। कहता तो वह भी था कि वह मुझे प्यार करता है। और इन्हीं सबके बीच एक दिन................। जब मेरे पेट में उसका गर्भ ठहर गया तो मैंने उससे कहा कि मेरे पेट में तुम्हारा बच्चा है तो वह खुश हुआ.... परेशान नहीं।

अरे आप खुश हेैं। मेरी तो जान ही निकल जाएगी।

हमने प्यार किया है और ये हमारे प्यार की निशानी है घर वाले स्वीकारेंगे तो ठीक है नहीं ‘तो हम लोग कोर्ट मैरिज कर लेंगे। उसकी बोल्डनेस पर मैं बहुत खुश हुई थी। तभी एक दिन

मैं अपनी बुआ के घर पर ही छत पर कपड़े सुखाकर लौट रही थी कि छोटी बुआ के कमरे से कुछ आवाजें आती सुनाई दीं। मैं और पास गई तो मुझे उनमें एक आवाज अपनी बड़ी बुआ के लड़के की भी लगी जिसे मैं बेहद प्यार करती थी। मैं खड़ी हो गई और सुनने लगी थी। कुछ देर बाद आवाजें बंद हो गई तो मैं उनके कमरे में अंदर चली गई थी। अंदर.............. मेरी छोटी बुआ........ और वही नीच.............. निर्वस्त्र..............।

बस मैं फिर अपनी बुआ के घर नहीं रूकी। लोैट आयी थी अपने घर। मां को सारी बात बता दी थी। मां ने पिता और पिता ने भाइयों से होती हुई बुआ और फूफा तक बात पहुंचा दी थी। पिता ने बुआ से सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए थे लेकिन रिश्ते तोड़ने से मेरे पेट में इस पेट में, जो उसका पाप था वह थोडे़ ही तोड़ा जा सकता था। मां पिताजी ने कहा भी था एबोर्सन के लिए लेकिन मैं नहीं मानी थी। तुमसे शादी हो गई। अब मैं तुम्हारे सामने हूॅं अपना लो............... त्याग दो............. आपकी मर्जी। मैं पापिन हूॅं या नहीं मेैं नहीं जानती.............. मैंने तो उससे प्यार किया था............... उसने क्या किया वह जाने..............। हाॅं एक बात जरूर है मैंने आपको धोखा दिया है..............ऐसा धोखा जिसका कोई प्रायश्चित नहीं............. कोई माफी नहीं। सिंहनी की तरह गर्जना करती तुम्हारी मां एकाएक चुप हो गई थी।

मुझे उनकी कोई बात अच्छी नहीं लगी थी। हां एक बात जिसका मैं आज तक कायल हूॅं, वह थी उनकी साफबयानी.........झूठ नहीं.............. कोई लागलेश नहीं.......... स्पष्ट बात। अच्छा मुझे एक बात बताओ राजेश्वरी............... अगर मैं तुम्हारी जगह होता और तुम मेरी जगह होती तो तुम क्या करती।

मैं तुम्हें घर से निकाल देती।

मैं दंग। उनके मुंह की तरफ मूर्ख की तरह ताकता रह गया था।

लेकिन मैं तुम्हें घर से नहीं निकालूंगा।

आपका उपकार लेकर कैसे जी पाऊंगी मैं। तो मुझ पर उपकार करेंगे आप...............

ठीक उसी तरह जिस तरह किसी का पाप लेकर आप जी रही हैं। न जाने मैं कब बोल गया था।

आप मुझे ताने दे-देकर अपने साथ रखना चाहते हैं तो इससे मृत्यु अच्छी है। औेर हो सके........... हालंाकि मुझे यह सब कहने का हक या अधिकार तो नहीं है थोड़ा भी मान.......... सम्मान............. यदि आप दे सकें प्यार नहीं............ तो जी ल्रूंगी मैं आपके साथ। और मैंने देखा था उस दिन इतना कहने के बाद स्वाभिमानी मेरी राजेश्वरी बिलख बिलखकर रोने लगी थी और रोते में भी एक ही बात कह रही थी आपसे एक वादा करती हूं................. जीवन की आखिरी सांस तक आपसे धोखा नहीं करूॅंगी...........वैसे मेरे वादे पर कोई क्यों विश्वास करे।

कोई क्यों मैं करूॅंगा आप पर विश्वास राजेश्वरी। मैं कभी आपको इस बात के लिए ताना नहीं दूंगा ये मेरा वादा रहा आपसे।

बस मैंने उस दिन वायदा क्या किया। मैं तो सब कुछ भूल ही गया था। मैंने अपनी ओर से खूब प्यार किया। उन्होंने अपने मायके वालों से हमेशा हमेशा के लिए संबंध तोड़ लिया था। मेरे साथ पूरी तरह ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा और प्यार निबाहते हुए तुम्हें जन्म दिया। और तुझे जन्म देने के ठीक तीसरे दिन .......... हां, हां तीसरा ही दिन तो था............. उसी दिन............. मेरी राजेश्वरी ............. मुझे हमेशा हमेशा के लिए छोडकर...............।

कहते कहते मैं बिलखने लगा था। राजेश और साक्षी ने मुझे चुप कराया था। दोनों मुझे बच्चे की तरह पुचकार रहे थे तभी तो में बोला था, और अपनी आखिरी सांसों में से कुछे सांसे चुराकर वे बोली थी...... बेटा दिए जा रही हूं तुम्हें........... उसे कभी मत बताना कि उसकी मां व्यभिचारिणी थी। हर आदमी आप सा नहीं होता.................... आपको मैं देवता तो नहीं कहूंगी लेकिन हां समाज में एक व्यक्ति भी यदि आप जैसा हो जाए तो.......... अरे हां एक बात और मैंने तुम्हें शादी से पहले अपने व्यभिचार की बात नहीं बतायी थी............... धोखा किया था आपके साथ और अब देखो ..........जीवनभर आपके साथ रहने का वादा किया था...............फिर धोखा कर रही हूं............धोखेबाज कहीं की........... लेकिन एक बात कहूूं............... मैंने उस धोखे के लिए आपसे मांफी नहीं मांगी थी लेकिन इस धोखे के लिए मुझे माफ कर दो............. माफ कर दो मुझे...........। कहती रही थी राजेश्वरी और मैं...............मैंने तो सिर्फ इतना ही कहा था.............मैं तुम्हें इसके लिए कभी मांफ नहीं करूॅंगा कभी भी................ ऐसे भी करता है कोई कि बीच रास्ते में छोड़कर चल दे। मृत्यु पर हमारा किसी का वश नहीं है। उनका भी नहीं था। उन्होंने रात के ठीक बारह बजे आंखें बंद कर ली थी तो फिर आज तक नहीं खोलीं।

वे चली गई। तुम्हें अपना रक्त पिला-पिलाकर बढ़ा किया मैंने। कोशिश की मां और पिता दोनों का प्यार दूं। पता नहीं दे पाया या नहीं ये तो तुम्हीं जानते होंगे। कहते कहते मैं शून्य में ताकने लगा था मानो सोच रहा था कि कहीं से राजेश्वरी आ जाएं औेर ऐसी विपरीत परिस्थिति में मेरा साथ दें................ मुझे रास्ता दिखाए। मेंै अभी सोच ही रहा था कि बेटा बोला था, लेकिन पापा मैं आप नहीं बन सकता। मैं इसे कभी माफ नहीं करूंगा। इसके साथ एक पल भी नहीं रह पाऊंगा मैं।

बिल्कुल मत रहो लेकिन एक बात बताओ

पूछो पापा

तुम्हारी माॅं ने मुझसे प्यार नहीं किया था उन्होंने उस आदमी से प्यार किया था जिसने उनके साथ धोखा किया और जिसके साथ उनका पवित्र रिश्ता भी था। मैं तुम्हारी मां को प्यार नहीं करता था। फिर भी पूरा जीवन उनके साथ निकाला। लेकिन तुम तो अपनी पत्नी को प्यार करते हो। तुमने तो लव मैरिज की है। तुम अपनी पत्नी को चाहो तो माफ कर सकते हो सिर्फ इसलिए कि तुमने उसे प्यार किया है और जो प्यार करते हैं उनके लिए ये सब बातें कोई महत्व रखती हेैं क्या? क्या प्यार में इन सभी बातों का कोई अस्तित्व है। इतना कहकर मैं चुप हो गया था।

मेरा बेटा और बहू प्रश्नों में उलझे हुए थे।

 

 

 

पूरण सिंह

 

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