मैं,दीदी, राजू और बड़े भैया जब साथ -साथ बैठकर खेलते तो जीजी अम्मा को भी न जाने कहां से खोजकर ले आती और हम सब के साथ बैठा लेती थी । फिर हम सब उड़न छू-उड़न छू खेलते थे । बड़े भैया से खेल की शुरूआत होती ......
बड़े भैया कहते - कुत्ता उड़।
कोई हाथ नहीं उठाता ।
बड़े भैया कहते - बिल्ली उड़।
कोई हाथ नहीं उठाता ।
बड़े भैया फिर कहते - गधा उड़।
फिर भी सब हाथ नीचे किए रहते ।
और जब बड़े भैया कहते - चिड़िया उड़।
तब सभी हाथ ऊपर उठा देते। अम्मा हाथ उठाती तो उठाए ही रहती। हम सब अम्मा की ओर देखते कि अम्मा कब हाथ नीचा करे लेकिन अम्मा..........अम्मा हाथ नीचा करती ही नहीं । हां इतना जरूर था कि अम्मा हाथ उठाए-उठाए ही दीदी की ओर देखने लगती और एकटक देखे ही चली जाती। मैं देखता कि अम्मा की आंखेंा में कुछ तैरने लगता। बहुत देर बाद अम्मा अपनी धोती के पल्लू से उसे पोंछती और हमारा खेल बंद हो जाता ।
बाद में -
हम सब अम्मा को घेरकर बैठ जाते और अम्मा दीदी को अपनी दोनों बाहों में एैसे भर लेती मानो डर रही हो कि कोई दीदी को उससे छीन न ले ।
पूरण सिंह
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