Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज़ादी सही अर्थो में स्वतंत्रता दिवस

 

भारत देश को अंगे्रजों की गुलामी से मिली स्वतंत्रता के उत्सव का दिवस,एक राष्ट्रीय त्योहार जिसे हम खूब धूम घाम से मना कर पूरे विश्व को अपनी आजादी के उत्सव की जानकारी देते हैं उपर से स्वतंत्र दिखने वाले हम लोग कहाॅ हो पाये हैं स्वतंत्र......हम कितने स्वतंत्र हैं आज भी तो हम प्रगति के नाम पर आन्तरिक रूप विदेशी भाषा ,विदेशी संस्कृती,विदेशी खानपान के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि हम चाह कर भी उसे छोड नही पा रहे उपरी तौर पर हम स्वतंत्र हैं ....पर जब किसी बडे राष्ट्रीय आयोजन को करते हैं तो उन मुठठी भर विदेशियों की सुविधाओ को घ्यान में रखते हुये विदेशी भाषा , विदेशी बैठक व्यवस्था व खानपान का घ्यान रखते हुये उन्ही के अनूकूल व्यवस्था करते हैं और हम उनके आदर्श बनने के बदले उन्हे अपना आदर्श बना कर गर्व महसूस करते हैं।जबकी हमें गौरव तेा तब महसूस होना चाहिये जब हर व्यक्ति देश हित में प्रयास रत हो।......... आजादी..... भी तो हमें इसी भावना के चलते मिल पाई थी और उसे बरकरार रखने के क्या और कितने प्रयास हम कर रहे हैं ये हैं विचारणिय विषय हैं
स्वतंत्रता शब्द बडा आकर्षक हैं.... उसका लाभ उठाना उससे भी अधिक आन्नद देता हैं बच्चो को अपनी आजादी पसंन्द हैं युवाओं को आजादी से रहने की चाह युगों युगों से हैं यहाॅ तक की हमारे बुर्जुग भी कहाॅ आजादी का मोह छोड पाये हैं आखिर क्या हैं ये आजादी समाज में रहकर अपने अनुसार जीना यदि आजादी हैं तो सामाजिक व्यव्स्थाओं का अर्थ क्या,..क्या आजादी व्यवस्था के खिलाफ ही..... जीना है.... चारो और आन्दोलन हैं आजादी .... प्रेस को अपनी आजादी चाहिये शिक्षण संस्थान अपनी आजादी की मांग कर रहे हैं स्वास्थ्य सेवाये अपनी आजादी के लिये तत्पर हैं....कहाॅ कौन हैं जो उन्हे बांधे हुये हैं जिससे वह आजाद होना चाहते हेंै। हम मांग रहे हैं आजादी दूसरे पर अंगुली उठाने की पर क्या बाकी चार अगुलियंा जो आप पर इंगित होंगी उसे सहन करने की क्षमता,धैर्य संयम आप में हैं वास्तव में आजादी वो नियम व मर्यादाये हैं जिनके उनुसार संस्था व्यक्ति व समाज को चलना हेै।हर व्यक्ति चाहता तो यही हैं कि वह नियम से चले पर वह नियम उसके अपने हो ,उनकी सीमाओं का निर्धारण वो स्वयं करे...पर सभी जानते हैं की स्वत्रता के साथ कर्तव्य जवाबदारी जिम्म्ेादारी ईमानदारी जेसे भावनात्मक शब्द भी जुडे हैं यदि आप इन सभी मावनीय भावो को साथ रख कर आजादी का उपयोग करने में सक्षम है ं तो आप आजाद हैं। दुरदर्शिता से भी विचार करना होता हैं क्यों की कर क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्म्भावी हैं
देश, समाज राष्ट्र और परिवार की सीमाओं में रहकर उपयोग की गयी स्वतंत्रता मान्य हैं वर्ना स्वंत्रता का अर्थ ही विपरीत हो जायगा। कर्तव्यों से सजी स्वतंत्रता ही देश का गौरव हैं जब एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की सत्ता के अधिग्रहण के प्रयास न करे , एक संस्कृति दुसरी संस्कृति के प्रति सम्मान रखे व्यक्ति व्यक्ति में आपसी प्रेम हो तब हैं असली आजादी....हम जिसे आजादी कह रहे हैं संभवत वह तो हमे आपस में बांट लेने के प्रयास की आजादी है।

 

 


प्रेषक प्रभा पारीक मुम्बई

 

 

 

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