ओ यादव कुल के गिरधारी ।
अब आरक्षण की तेरी बारी ,
तु भी अपनी माँग बता जा,
आरक्षण का बिगुल बजा जा।
गांव शहर और देश बेमानी ,
अपनी अपनी जात बता जा,
आरक्षण का बिगुल बजा जा।
बृज की सारी भोली नारी ,
सभी बनी तेरी गोपी प्यारी
उनकी जात तु आज बता जा,
आरक्षण का बिगुल बता जा।
पढना लिखना सभी बेमानी,
जब सबने अपनी जात पहचानी,
अंक तालीका तु झुठलाजा,
आरक्षण का बिगुल बजा जा।
हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई,
विभाजित से पडे दिखाई
तु भी अपनी जात गिना जा,
आरक्षण का बिगुंल बजा जा।
प्रभा पारीक
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