Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अति प्रश्नों से बचें

 

प्रस्तुत कथा ’’ उपनिषद की कहानियां ’’ भारतीय साहित्य निधि द्वारा प्रस्तुत पुस्तक से ली गयी हैं
अति प्रश्नों से बचें
यह उस समय की बात हैं जब सोचने के काम में जुटने वाले नव चिन्तको के लिये सोचने का काम नया नया था । इस लिये वह बहुत जोर लगा कर सोच रहे थे और लगातार सोचते ही जा रहे थे वे खुद भी नहीं जानते थे कि वह इतना सोच कर कर करेगें क्या? अपने ओजस्वी विचारों को रखेगे कहाँ? उनके साथ परेशानी थी कि वह अपनी बात को ठोस बनाने के लिये लाख जतन करते पर अर्मुत हो जात थे।
वचक्नु की पुत्री गार्गी ने ऐसे सवाल पूछने शरू किये जिनका सबंध उपनिषद कालीन ब्रह्मांड- दर्शन और सृष्टि -चक्र से था। सवाल छोटे और जवाब उससे भी छोटे। गार्गी वाचक्नवी ने पूछा ’’ सब कुछ तो जल में ओत प्रोत हैं फिर जल किसमें ओतप्रोत हैं?
याज्ञयवल्क्य ने कहा,’’वायु में।’’
वायु किसमें ओतप्रोत हैं?’’
अंतरिक्ष लोक में?’’अंतरिक्ष किसमें ओतप्रोत हैं?’’
गंधर्वलोक में।’’
गंधर्वलोक किसमें ओतप्रोत हैं?’’
’’आदित्य लोक में’’
आदित्य लोक किसमें ओतप्रोत हैं?’’
चन्द्र लोक में।’’
चन्द्र लोक किसमें ओतप्रोत हैं?’’
नक्षत्रलोक में।’’
नक्षत्रलोक किसमें ओतप्रोत हैं?’’
देवलोक में।’’
देवलोक किसमें समाहित हैं?’’
इस क्रम में देवलोक इन्द्रलोक में,इन्द्रलोक प्रजापति लोक में और प्रजापति लोक ब्रह्म लोक में समाहित बताया गया हैं।इस पर जब वाचक्नवी गार्गी ने पूछा ब्रह्म लोक किसमें समाहित है?’’तो याज्ञवल्क्य बोले ’’ गार्गी यह अति प्रश्न है ंसभी जिज्ञासाओं का एक अन्तिम बिन्दु हैं जिसके आगे न तो प्रश्न होते हैं ना उत्तर दिये जा सकते हैं इसके विषय में जो कुछ शास्त्रों में लिखा हैं या जो कुछ आप्तजन मानते हैं उसे ही मान लेना पर्याय हैं।अति प्रश्न करोगी तो तुम्हारा मस्तक गिर जायगा-मा अतिप्राक्षीः मा ते मुर्धा व्यप्तत्
गार्गी तो जेसे डर कर चुप ही हो गयी । हमारे मन में प्रश्न बना ही रह जाता हैं कि क्या ब्रह्मवादी लोग भी लोगों को डरा धमका कर चुप करा दिया करते थे ? यह उत्तर क्या पर्याप्त नही था कि इसके विषय में तो मुझे भी मालूम नहीं हैें क्या जिस तरह उन्होने आर्त भाग से कहा था ,इस प्रश्न का उत्तर तो मुझे भी नही आता …चलो इस पर मिलकर एकांत में विचार करते हैं वैसा ही कोई जवाब वह गार्गी को नहीं दे सकते थे शायद वह इसको विचारणीय भी नहीं मानते थे। प्रश्न करने वाले को प्रश्न की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिये जिसका उŸार कोई दे ही नहीं सकता। पर ये उस समय की बाते हैं जब थोडी सी घौस पट्टी से भी ऐसे लोगो को भी काम लेना पडता था जो स्वयं घौस पट्टी को अच्छा नहीं मानते थे।

 

 

प्रेषक प्रभा पारीक

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