भलमनसाई
एक बडे स्टोर के मालिक रूप सिंह जी को सदैव ये विश्वास था कि उनका ये स्टोर जो कि बीच बजार में है जब तक यह है तब तक पीढीयों को किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यक्ता नहीं है। बेटे पोते आराम से बैठ कर खा सकते हैं। रूप सिंह अपने स्टोर में काम करने वालों का भी बहुत ध्यान रखते। एक कर्मचारी जो उन्हीं के द्वारा दी गई तनख्वाह से एक बडे परिवार को किसी तरह से चला रहा था। रूप सिंह जी उसको मदद करने के हर संभव प्रयास करते रहते थे, एक बार कुछ एैसा हुआ कि उन्होंने दुकान पर कुछ पुराना स्टाॅक रखा था। उसे निकालने के उदेश्य से उन्होंने वह सामान अलग रखवा दिया। कुछ दिन रखा रहने के बाद उन्होंने उस कर्मचारी को उस सामान को किसी भी भाव में निकाल देने की बात कहीं, सामान क्यों कि ज्यादा था। गोडाॅउन में जगह रूकी हुई थी। यह बात उस कर्मचारी बातों बातों में अपने परिवार में बताई उनके जवाने बेटे ने पिता से कहा वह माल आप मुझे दिलवा दें मैं प्रयास करता हुं। नई सोच नई उर्जा ने उत्साह से उस सामान को बेचने के प्रयास किये और अपने ही हाॅस्टल में वह सामान उसने बेच दिया। उस कर्मचारी ने वह पैसे लाकर सेठ जी को दिये। सेठ जी भी प्रसन्न हुये और उसमें से कुछ भाग उस कर्मचारी को भी दिया और बात आई गई हो गई। अब तो उस कर्मचारी का वह बेटा भी बार बार पिताजी से इस तरह से माल के बारे में जानकारी लेने लगा था। इधर हालात शेर के मुह में खूंन लगने जैसे हो गये थे।
कुछ समय ही बीता था कि फिर से कुछ अनाज स्टाॅक पुराना होने के कारण उन्हे निकाल देने को कहा, वह कर्मचारी तुरन्त तैयार हो गया और वह माल उसने अपने पुत्र को बेचने को दे दिया। एैसा दो तीन बार होने से बेटे ने अपनी पढाई खतम होते ही अपनी दुकान खोलने का मन बना लिया था। कर्मचारी ने सेठ जी से व रिश्तेदारों से कुछ रूपै उधार लिये और उसी बाजार में सेठ जी जैसी ही किराना की छोटी सी दुकान खुलवा दी। सेठ जी ने ध्यान नहीं दिया । कर्मचारी का बेटा धीरे धीरे सभी व्यापारियों को पहचानने लगा था सेठ जी की साख पर सामान खरीदता, उधार चुका भी देता। दुकान अच्छी चल निकली । अकसर कमजोर क्वालिटि का माल खरीदता और सेठजी से कम दामों में बेचने लगा। अच्छी क्वालिटि के नाम से सेठ जी की दुकान जैसा माल उनसे अधिक दाम में देकर अपनी प्रतिष्ठा बनाने में माहिर हो गया था। देश में कोरोना का कहर आरम्भ हो चका था। जवान खून था आने वाली परिस्थितियों को भांप कर उसने अच्छा स्टाक एकठठा कर लिया था। अपने साथ अपने एक दो दोस्तों को भी लिया और इस लाॅक डाउन की इस भीषण विपदा के समय घर के बाहर निकले बिना ही खूब पैसे कमा लिये। उधर जब लाकडाॅउन खुला तब सेठ जी अपनी दुकान पर आय,े इस दौरान बच्चों ने उनको धर के बाहर भी नहीं निकले दिया था और स्वयं भी दुकान में कोई रूची नही ली थी। करीब तीन चार महिने बाद दुकान को चालु करने और वापस उसी गति से चलाने में सेठ जी की काफी शक्ति व्यय हो रही थी।
एक दिन उनको किसी ने आकर बताया कि कैसे उनके कर्मचारी के बेटे की दुकान लाॅकडाउन में भी अच्छी चली और उनकी दुकान से ज्यादा बिक्रि हो रही है। सरल ह्रदय सेठजी ने कर्मचारी से इस विषय में कोई बात नहीं कि पर एक दिन वह समय निकाल कर कर्मचारी पुत्र को बधाई देने जा पहुँचे। वह सब कुछ देख कर दंग रह गये थे । जिस दुकान को जमाने में उनको जीवन भर लग गया था उनसे आधी उम्र के लड़के ने उनसे ज्यादा अच्छी तरह व्यापार जमा लिया था। पर उन्हंे कोई अफसोस नहीं था कि वह उनसे ज्यादा कमा रहा है संतोष व खुशी थी कि उनके यहाँ काम करते कर्मचारी ने उनके साथ कोई धोखा नहीं किया। वह उनके साथ दगा भी कर सकता था। संतोष था कि आखिर उनके सिद्धान्त किसी और के भी काम आ रहे हैं उन्हे बाजार में लोगों से बहुत चढाया पर उन्होंने इस बात को कोई अहमियत नहीं दी और शान्ति से अपना काम करते रहे। देश के हालात ठीक होने लगे थे तीसरी लहर की तैयारी की बातें होने लगी थी एक दिन कर्मचारी पुत्र उनकी दुकान पर आया और उसने एक बहुत अच्छा सुझाव उन्हें दिया कि यदि तीसरी लहर आ भी जाती है तो आप घर में ही रहें।
बेटा भी बार बार पिताजी से इस तरह से माल के बारे में जानकारी लेने लगा था। इधर हालात शेर के मुह में खूंन लगने जैसे हो गये थे।
कुछ समय ही बीता था कि फिर से कुछ अनाज स्टाॅक पुराना होने के कारण उन्हे निकाल देने को कहा, वह कर्मचारी तुरन्त तैयार हो गया और वह माल उसने अपने पुत्र को बेचने को दे दिया। एैसा दो तीन बार होने से बेटे ने अपनी पढाई खतम होते ही अपनी दुकान खोलने का मन बना लिया था। कर्मचारी ने सेठ जी से व रिश्तेदारों से कुछ रूपै उधार लिये और उसी बाजार में सेठ जी जैसी ही किराना की छोटी सी दुकान खुलवा दी। सेठ जी ने ध्यान नहीं दिया । कर्मचारी का बेटा धीरे धीरे सभी व्यापारियों को पहचानने लगा था सेठ जी की साख पर सामान खरीदता, उधार चुका भी देता। दुकान अच्छी चल निकली । अकसर कमजोर क्वालिटि का माल खरीदता और सेठजी से कम दामों में बेचने लगा। अच्छी क्वालिटि के नाम से सेठ जी की दुकान जैसा माल उनसे अधिक दाम में देकर अपनी प्रतिष्ठा बनाने में माहिर हो गया था। देश में कोरोना का कहर आरम्भ हो चका था। जवान खून था आने वाली परिस्थितियों को भांप कर उसने अच्छा स्टाक एकठठा कर लिया था। अपने साथ अपने एक दो दोस्तों को भी लिया और इस लाॅक डाउन की इस भीषण विपदा के समय घर के बाहर निकले बिना ही खूब पैसे कमा लिये। उधर जब लाकडाॅउन खुला तब सेठ जी अपनी दुकान पर आय,े इस दौरान बच्चों ने उनको धर के बाहर भी नहीं निकले दिया था और स्वयं भी दुकान में कोई रूची नही ली थी। करीब तीन चार महिने बाद दुकान को चालु करने और वापस उसी गति से चलाने में सेठ जी की काफी शक्ति व्यय हो रही थी।
एक दिन उनको किसी ने आकर बताया कि कैसे उनके कर्मचारी के बेटे की दुकान लाॅकडाउन में भी अच्छी चली और उनकी दुकान से ज्यादा बिक्रि हो रही है। सरल ह्रदय सेठजी ने कर्मचारी से इस विषय में कोई बात नहीं कि पर एक दिन वह समय निकाल कर कर्मचारी पुत्र को बधाई देने जा पहुँचे। वह सब कुछ देख कर दंग रह गये थे । जिस दुकान को जमाने में उनको जीवन भर लग गया था उनसे आधी उम्र के लड़के ने उनसे ज्यादा अच्छी तरह व्यापार जमा लिया था। पर उन्हंे कोई अफसोस नहीं था कि वह उनसे ज्यादा कमा रहा है संतोष व खुशी थी कि उनके यहाँ काम करते कर्मचारी ने उनके साथ कोई धोखा नहीं किया। वह उनके साथ दगा भी कर सकता था। संतोष था कि आखिर उनके सिद्धान्त किसी और के भी काम आ रहे हैं उन्हे बाजार में लोगों से बहुत चढाया पर उन्होंने इस बात को कोई अहमियत नहीं दी और शान्ति से अपना काम करते रहे। देश के हालात ठीक होने लगे थे तीसरी लहर की तैयारी की बातें होने लगी थी एक दिन कर्मचारी पुत्र उनकी दुकान पर आया और उसने एक बहुत अच्छा सुझाव उन्हें दिया कि यदि तीसरी लहर आ भी जाती है तो आप घर में ही रहें। आप अपने सारे स्टाक की जानकारी लिखित रखें और जरूरत पड़ने पर मै आपका सामान भी उचित मुल्य में बेच कर आपको पैसे दे दूंगा। आपको भी लाॅकडाउन में नुकसान नहीं होगा। उसके बदले आपको कुछ कर्मचारियों को दुकान पर नियुक्त रखना होगा। कुछ विचार करने के बाद सेठजी ने हामी भरी और चैन से काम पर लग गये। आखिर उनकी भलमानसाई उनके काम तो आनी ही थी आज के समय में जब व्यापारियों में गलाकाट स्र्पधा हो रही है। कर्मचारी पुत्र का एैसा सच्चा व्यवहार कर्मचारी के इमानदारी भरे संस्कार व उनके अच्छे व्यवहार का प्रतिफल ही तो थे ।
प्रेषक प्रभा पारीक, भरूच
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