Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भूख शंख और संतोश धन

 

आपकी आत्मा से परे कोई शत्रु नहीं है, असली  शत्रु तो आपके भीतर रहते हैं क्रोध आसक्ति और नफरत इष्र्या।
एक गरीब ब्रह्यमण देवता। पूरे दिन भिक्षा मंागते पर फिर भी पेट भर अन्न नहीं पा सकने के कारण ष्षारीरिक रूप से अति कमजोर होते जा रहे थे। वह कभी कभी अपनी इस अवस्था के कारण अपनी पत्नि की परेषानी देखते तेा दुखी हो लेते और अगले ही पल स्वयं को मना लेते। पर उन्हे इसके लिये किसी से भी षिकायत भी नहीं थी। किसी तरह से दिन निकल रहे थे एक दिन भगवान् के सामने बेठे ब्रह्यण देव ने प्रार्थना करते हुये कहा ’’हे देव तुमने मुझे मानव शरीर दिया हैं तो उसके पो शण के इन्तजाम की जिम्मेदारी भी उठा लो आप तो सर्व ज्ञाता ठहरे।
भगवान् का ब्रह्मण देव पर दया आ गई उन्हाने उसे एक ष्ंाखनी (छोटा ष्ंाख)देते हुये कहा इसे अपने घर में रख लो भोजन के समय इससे जो मांग करोगे, वह पूरी हो जायगी।ब्रह्मण देव ने ष्षंखनी अपने धर में आदर से रख ली अब पति पत्नि भूख लगने पर जो भोजन मांगते उन्हे मिल जाता। कभी पकवान खाने का दिल करता तो वह भी मिल जाता। दौनों ही इतने साधारण व संतुष्ट थे कि उन्हाने कभी कोई अन्यथा मांग षंख के सामने नहीं रखी। अब पूरा समय भगवत् भजन में बीतता और दो समय मुहमांगा भोजन बैठे बैठे ही मिल जाता। इसलिये ब्रह्मण देव महिनों से घर के बाहर नहीं निकले। उसी झोपडी के सामने वाला घर एक व्यापारी महाशय का था। उन्हाने विचार किया कि ब्रह्मण देवता आजकल बाहर दिखते नहीं भिक्षा के लिय जाते नहीं देखा। और दिन पर दिन हष्टपुष्ट भी होते जा रहे हैं पत्नि दौनों ही स्वस्थ नजर आ रहे हैं। देखना चाहिये कि इतना गडा खजाना ब्राह्यण देवता ने कहाॅ से पाया हैं उन्होंने एक दूत को भेजा पता लगाकर आने के लिये।
दूसरे दिन दूत ने आकर व्यापारी को समाचार दिया कि ब्रह्मण देव के धर में एक षंखी हैं जिससे वह दौनो वक्त का भोजन मांगते हैं और वह उन्हे दे देती हैं बाकी समय वह भगवत् भजन ही करते रहते हैं व्यापारी विचार करने लगा। इतनी अनमोल वस्तु बा्रह्मण के किस काम की यह तो मेरे पास होनी चाहिये।और व्यापारी ने वह षंखी ब्राह्मण में घर से चुरा लाने का आदेश दिया। एैसा ही हुआ षंखनी पा कर व्यापारी अब संतुष्ट था ब्राह्मण पुनः उसी स्थति में आ गया। उससे कारण उसने भगवान के सामने गुहार लगाई औरष्षंखनी के चोरी हो जाने कीष्बात भगवन् के सामने बता दी। ब्रह्मण ठहरे भगवान् , भक्त पुकारे और उनकी बात कैसे टालें भगवन् ,सो भगवान ने उनसे कहा तुम्हारी षंखनी तो मै वापस नहीं दे सकता पर उसी व्यापारी से तुम्हे वापस मिल जाये इसका साधन तुम्हे दे सकता हूॅ कुछ दिन धैर्य रखकर तुम अपनीष्षंखनी पुनः पा लोगे। मैं तुम्हे एक ष्ंाखडा (बडा षंख)दे रहा हूॅ जो मांगने पर भीे तुम्हे देगा तो कुछ नहीं बस देने का षोर अधिक मचायेगा। तुम्हे इससे बड़ी बड़ी मांग करनी होगी। ब्राह्मण देवता ने उसे सहर्श स्वीकार किया अब क्या था। रोज सुबह ब्राह्मण देवता एक लाख रूपै की मांग करते षंखडा जोर से कहता ’’लो दो लाख’’, इस तरह सुबह श्षाम इसी तरह की आवाजें सुन कर व्यापारी का माथा ठनका उसने दूत को पुनः भेजा और दूत ने समाचार दिया कि ब्राह्मण देवता को रोज लाखों रूपै देने वाला षंखडा मिला है।ं इसी लिये ब्राह्मण देव के घर से इस तरह की आवाजें आ रही हैं। व्यापारी ने अब उसे हथिया लेने का आदेश दे दिया। और उसके स्थान परष्षंखनी को पुनः रख आने को कहा। दूत ने मौका पा कर वैसा ही किया और दूसरे ही दिन भगवन् के आदेश पर ब्रह्मण देव झोपडी छोड़ कर किसी अन्य स्थान पर चले गये और व्यापारी षंखडे से निरंतर मांग करते रहे। इस आषा से कीष्षायद कभी तो दे ही देग
धन से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली जितना अधिक व्यक्ति के पास धन होत वह उससे अधिक चाहता हैं धन रिक्त स्थान को भरने के बदले शुन्यता पैदा करता हैं
सच्ची भक्ति करने वालों की विनती भी भगवान् के लिये आदेश हो जाता है।

 

 

प्रभा पारीक

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