कहते है कि सुदर रंगों से चित्रो से दिवारे बोल उठती है। क्या कहती है?..... यह प्रत्येक समझने वाले पर निर्भर करता है दिवारों पर सुन्दर चित्र ,रंग व सजावट जिस तरह देखने वाले को आकर्षित करती है उसी को हम दिवारो का बोलना कह सकते हैं। पर कभी कभी प्रेरणादायक उत्क्रष्ट, आर्दश व दिशा देने वाले वाक्य लिखें हो तो देखने वाले उसे अनायास ही पढेगें और प्रभावित होंगे।जिससे उत्कृष्टता की और इंगित करने वाला वातावरण तैयार होगा।
यह तो निष्चित रूप से नहीं कहा जा सकता की कोइ अच्छेे वाक्यों को पढेगा व निहित पे्ररणाऔ पर आचरण भी करेगा...पर यह सफलता तो सुयोग्य व्यक्तियों द्वारा दिये लम्बे चोडे भाषणों प्रवचनों में भी नही मिलती।और जब बडे बडे सदग्रंथ भी तत्काल कोइ चमत्कारी प्रभाव नहीं दिखा पाते,किन्तु इन वाक्यो पर देखने वाले की निगाह बराबर जाती है।.....तो उस सदविचार का हल्का सा संस्कार जरूर पडता है ।और यदि वे संस्कार एकत्रित होने लगे ,तो कालानतर में ही अपना अनोखा प्रभाव उत्पन्न करते हैं।जिस प्रकार बुरी बातेां को बारबार देखने ,सुनने ,सोचने से उनकी ओर मन ललचाने लगता है उसी प्रकार प्ररेणाप्रद विचार भी उन पर अपना प्रभाव किसी न किसी रूप मे अवश्य ही छोडते हैं।
आदर्श वाक्यों की लेखन प्रकिया में एक वातावरण बनता है। जिधर से भी निकले उधर एक प्रेरणाप्रद प्रशिक्षण मिलता है तो हम यह सोचने लगते है कि सर्वत्र ही इसी प्रकार की भावनाओं का प्रवाह बह रहा है या जिनकी दिवारों पर यह लिखा गया है वह तो इससे सहमत है ही।और इसी प्रकार से वातावरण की छाप हर मनुष्य पर पडती हैं।ं इस तरह दिवारे बोलकर अपना असर दिखाने लगती हैं
कुछ गेय वाक्य
शिल्पी श्रमिक किसान जवान ये हैं पृथ्वी पुत्र महान।
अपना अपना करो सुधार तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।
सोचो समझो बचो नशे से , जीवन जियो बडे मजे से।
शिक्षा समझो वही सफल ,जो कर दे आचार विमल।
जहाॅ जन्म से जाती जुडी है।, वहाॅ मनुजता ध्वस्त पडी है।
अपनी आसपास व धर की दिवारो को मंहगें साधनो के बदले इन अमुल्य वाक्यो से सजाने का प्रयत्न करके एक नया अनुभव करो देखिये।
ं प्रभा पारीक
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