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Dr. Srimati Tara Singh
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गोस्वामी तुलसीदास

 

राम नाम के दो शब्द और उन दो शब्दांे की महिमा जानने के लिये पूरा जीवन.........नित्य नाम रटन के लिये राम के नाम पर अधिक जोर दिया गया हैं क्यों..... छोटा है? सरल हैं? आसान है....? अधिक असरकारक है?
इसका जवाब देने के लिये विस्तृत अनुभव की आवश्यक्ता हैं वो था संत गोस्वामी तुलसीदा जी के पास अपनी अस्सी वर्ष की वय में उन्हाने रामचरीत मानस गं्रथ की रचना की..... इतना अनुभव....होने पर भी उन्हाने लिखा था
राम नाम मनिदीप घरू जीह देहरी द्वार
तुलसी भीतर बाहेर हूुँ जो चाहसि उजियार-
अर्थात यदि तू भीतर और बाहर दौनो और उजियाला चाहता है तो मुखरूपी द्वार की जीभरूपी देहली पर रामनाम रूपी मणि दीपक को रख।
संत कबीर के इस वाक्य को स्वीकृति देता प्रतित होता है-कि राम नाम सतसार हैं,सब काहूँ उपदेश।।
तुलसी के अनुसार भी
जपहि नामु जन आरत भारी मिटहिं कुसंकट होहि सुखारी
राम भगत जग चारि प्रकारा, सुकृती चहिउ अनघ उदारा।।
गोस्वामी तुलसीदास सुसंस्कृत के विद्ववान एवं कवि ह्रदय तो थे ही ,उन्हाने अध्यन्न,स्वाध्यायएवं साधना से प्राचीन भारतीय साहिंत्यिक सम्पदा को भी आत्मसात कर लिया था ।वे अपनी उपासना से परात्पर ब्रह्म राम से भी अधिक उनके नाम को महत्व देते थे ।राम का नाम जपने से भवसागर तारण का मार्ग सुगम हैं यह धारण भारतीय दर्शन हैं और यह नामोपासना भारतीय चिन्तनधारा में अर्वाचीन नहीं हे।, अपितु वेदों में भी परमात्मा के अनेक नामों में से किसी भी एक नाम की उपासना करने का निर्देश दिया गया हैं।वहाॅ बहुदेव वाद के स्थान पर एक ही परमात्मा क अराधना का विचार द्रढ होता दिखायी देता है। ब्रह्म, विष्णु महेश -तीनों का वाचक प्रणव को बताया गया हें आचार्य विनोबा भावे ने कहा था,वेदो पुराणेंा धार्मिक ग्रन्थो सहित तुलसी कृत साहित्य में राम शब्द पर इतना अधिक विचार हुआ कि वह आस्था का केन्द्र बन गया ।रामतापनी के उत्तरतापनी उपनिषद में ऊँ के ओम् को क्रमश लक्ष्मण भरत शत्रुध्न बताते हुये सम्पूर्ण प्रणव या ऊँ को राम का वाचक बताया गया हैं।इसी तरह रामरहस्योपनिषद् में वेदान्त के महा वाक्य तत्वमसि के समकक्ष रकार को तत् म्कार को त्वम् तथा असि को संयोजक बताकर सम्पूर्ण राम को अदैततत्व का बोधक बताया हैं।
वेदों में ऊँ तथा राम दौनो ही पद मिलते हैं। अवेस्ता -गाथा में राम शब्द का अर्थ शान्ति किया गया हैं।यही राम शब्द क्रमश उपासना के परिवृत्त में आता गया। इस शब्द की यही सुदीर्ध परम्परा सन्त काव्य में प्रतिफलित हुई हैं कबीर दास कहते हैं- कि राम नाम सतसार हैं,सब काहूँ उपदेश।।
नामोपासना जपयोग अजपायोग का मूलाधार हैं। इसे ही रामानुजाचार्य ,रामानन्द प्रभृति आचार्येा ने सरलतम रूप से प्रचलित करने का प्रयास किया। परंन्तु जन साधारण के बीच इसे ले जाने का श्रेय संत भक्त कवियों को ही हैं।अतः इसका सदेव जाप करते रहने की सलाह देते हैं
तुलसीदास जी को नामोपासना में इतना विश्वास हैं कि वे कहते हैं यदि कोई नियमित आहार विहार के साथ छः मास राम नाम का जाप कर ले तो उसे समस्त सिद्वियां प्राप्त हो जायेंगी। इसके अलावा तुलसी ने सगुण और निर्गुण में कोई भेद न कर दौनो साधक नाम को ही महत्वपूर्ण माना हैं। आगे उन्हाने ये भी कहा हैं कि राम की महिमा स्वयं राम भी नहीं बता सकते।
रामनाम की महिमा का गुण गान सर्वाधिक गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया हैं रामचरित मानस के रचियेता विनय पत्रिका व अन्य ग्रन्थों लिखनेवाले संत गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी के बारे में जाने तुलसीदास जयंती के अवसर पर
प्रेषिका--- प्रभा पारीक
आज के इस तेजी से आधुनिकता की और भागते हुये युग में हम गोस्वामी तुलसीदास को कैसे भूल सकते हैं जिन्होने वर्षेा पहले कल्पना कर ली थी की मानव जाती का कलयुग में कैसा जीवन होगा? और अपनी कल्पना को रामचरितमानस के उत्तर कांड में उतार दिया था और आज उनकी कल्पना अक्षरश सत्य हो कर हमारे सामने हैं।

 


प्रेषिका-- प्रभा पारीक

 

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