बात उस समय की है जब कबीर आयु में छोटे थे और परमात्मा की खोज में भटकते फिरते थे एक दिन उन्हे रास्ते में एक किनारे पर एक स्त्री दिखाई दी जो चक्की से अनाज पीस रही थी चक्की में से गिरते हुये आटे को देख कर कबीर फूट फूट कर रोने लगे। निपट निरंजन नामक एक महात्मा वहाॅ पास में ही खडे यह देख रहे थे वे कबीर के पास गये और पूछा अरे बच्चा क्यों रो रहे हो?
कबीर ने रोते हुये जवाब दिया चक्की में जितना भी दाना डाला जाता हैं वह सब पिस कर आटा बन जाता हैं एक दाना भी बचता नहीं इसी प्रकार काल की महा चक्की में सारा जगत पिस रहा हैं मै भय से रो रहा हुं और सोच रहा हुं चक्की से बचने का उपाय क्या हैं।
निपट निरंजन हॅस पडे और कबीर को चक्की के पास ले कर आये उन्हाने चक्की पिसने वाली स्त्री से चक्की का उपर का पथ्थर हटाने के लिये कहा फिर ’उन्हाने उस धूरी की और संकेत किया ,जो उपर नीचे के पथ्थर के बीच लगी होती है और कहा देखो कबीर जो दाना धुरी के मूल के पास है या चिपका हुआ हैं सम्पर्क में है वह नहीं पिसा वह पूरी तरह सुरक्षित हैं वह पूर्ण रहता है यदी तुम काल की चक्की से बचना चाहते हो तो काशी जाओं वहाॅ रामानन्द नाम के एक महाम्मा रहते हैं उनका सामिप्य प्राप्त कर लो तो तुम काल की महा चक्की से पिसने से बच जाओगे।
कबीर पवित्र नगरी काशी पहुच कर अपने गुरू स्वामी रामानन्द जी से मिलते हैं वे अपने गुरू के पूर्ण रूप से समर्पित हो जाते हैं।और पवित्र गुरू मंत्र पाने में सफल हो जाते हैं गुरू की शक्ति और एंव प्राप्ति में निहित पवित्र शब्द को प्राप्त करते हैं वह तुरंन्त मन्त्रं के साथ तादात्म स्थापित कर लेते हैं ऐक्य प्राप्त कर लेते हैं मन्त्र एवंअपने गुरू में पूर्ण एकत्व की आनुभूति पाते हैं उन्हाने अपने गुरू के लिये अपना प्रेम एक विशिष्ट तरीके से व्यक्त किया हैं
सतगुरू शब्द कमान ले ,बाहन लागे तीर।
एक जु बाहा प्रित सों,भीतर बिंधा शरीर।।
सद्गुरू ने शब्द रूपी धनुष लेकर आत्म ज्ञान रूपी तीर चलाया
उनके प्रेम में एक तीर ने ,शरीर को भीतर तक बींध दिया।।
सतगुरू की महिमा अन्नत, अन्नत किया उपकार
लोचन अन्नत उघारिया, अन्नत दिखावन हार।ं
सतगुरू की महिमा अपार हैं उनका उपकार असीम हैं।
उन्होने अन्तर द्रष्टि को पूर्णतया खोलकर ,उस अन्नत में प्रभु का दर्शन कराने की कृपा की।
इस कहानी से यह स्पष्ट होता हैं कि कबीर अपने गुरू में सम्पूर्ण रूप से द्रढ प्रतिष्ठित थे अपनी सही समझ सत्य को जानने की तिव्र उत्कंठा और गुरू प्रेम के कारण वे गुरू में एक हो सके और श्री गुरू की स्थिति को प्राप्त कर सके
प्रभा पारीक
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