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जिंदगी इतनी बुरी भी नहीं

 

prabha pareek 

AttachmentsFri, Mar 13, 4:29 PM (2 days ago)




to me 



जिंदगी इतनी बुरी भी नहीं

असल में जिंदगी आसन  ही है कठिन होती ही नहीं है वो तो हम होते हैं ,जो से इसे कठिन बनाने के लिए दिन रात एक करते रहते हैं । 
आजकल बच्चों का  जीवन भी उतना सरल नहीं है जितना पहले था। बचपन के  संघर्षों से भरे जीवन में आजकल इन संघर्षों में कुछ संघर्ष तो ऐसे हैं जो बच्चे स्वयं पैदा करते हैं।  जैसे देखा देखी करना,कल्पनाओं के घोड़े दौड़ना ओर प्रयास न करना। किसी छात्र से झगड़ा होने पर उससे अधिक अंक लाने की चुनौती देना और प्रयास न करना। अथवा देखा देखी में किसी वस्तु की मांग माता पिता से करना, पर उनके बारे में परिस्थितियों के बारे में विचार न करने के कारण निराशा का सामना करना।
 इस खुशनुमा जीवन का बस आनंद  लो।आप जब सुबह उठो तो ध्यान दो  चारों और पक्षी च ह च  हा रहे है,  मंद मंद पवन बह रही है ,पेड़ के पत्ते लताएं झूम रहे हैं । नदियों के पानी में लहरें उठ रही हैं । सारी प्रकृति अपने अनुसार वर्तन कर रही है,तो हम ही क्यों  हैं इतने उदास । नीरस डरे डरे से।
 क्यों ना हम भी एक भरपूर  सांस अपने अंदर ले, सुखद संकल्प के साथ सकारात्मक सोच से  अपने दिन की शुरुआत करें ।  तब आप देखे कि आपका वो दिन कितना,सकारात्मकता के साथ क्रियात्मक बीतेगा। कभी प्रयास कर  के देखें जब आपको किसी ने कटु शब्द कहे, आपने प्रतिक्रिया नहीं दी  आपने उसे ध्यान से सुना जरूर,आपके मन में प्रतिक्रिया भी हुई, नकारात्मकता भी आई।  ऐसे में आप  उसको  धन्यवाद तो नहीं देंगे, कुछ कहेंगे या आंखें दिखाएंगे या मुंह बना कर चुप हो जाएंगे, पर इसके स्थान पर हंसते हुए, उसकी कही हुई बात को अनसुना करें, उसे अपने दिमाग से ऐसे झटक दें जैसे हम अपने कपड़ों पर पड़ी धूल को झाड़ देते हैं ,फिर देखिए आपका दिन कितना सुख मय हो जाता है। आप अपने प्रयासों में कभी कमी न आने दें। सभी को प्यार से देखें। 

यदि आप सही राह पर हैं और अपनी सही सोच से चल रहे हैं तो किसी को अहमियत देकर अपना दिमाग  खराब करना ही क्यों?
पक्षी क्या किसी दूसरे के अनुसार अपना व्यवहार बदलते हैं  वृक्ष क्या दूसरों की निंदा करने  पर अपने पत्ते झाड़ते हैं अथवा ज्यादा पानी मिलने पर जल्दी बड़े हो जाते हैं नहीं ना!  उनका सब कुछ उनकी प्रवृत्ति के अनुसार ही होता है तो फिर हम मानव दूसरों कि प्रतिक्रिया से  इतने क्यों  प्रभावित होते हैं  दूसरों के कहने से हम बदलने का उपक्रम करने को तत्पर रहते हैं । प्रकृति की हर चीज अपने नियम अपनी प्रवृत्ति से चलती है । एक इंसान ही है जो दूसरों के अनुसार बदलने को तत्पर रहता है ।फिर भी दुःखी रहता है।  लोगों को यह भी कहते सुना गया है कि जो बदल जाते हैं वह सुखी होते हैं इसका अर्थ यह हुआ कि हर बदलने वाला व्यक्ति पहले गलत होता है और बदल कर सही हो जाता है।..... नहीं ऐसा नहीं है हम मनुष्य को, अपने निकट के लोगों को, जैसा है वैसा स्वीकार करने के स्थान पर बदलने की आदत सी पड़ती जा रही है ,क्योंकि हमने  अपने व्यवहार में वर्चस्व की भावना कूट कूट कर भरी है।
 पर  बचपन का यह समय पहले सही मार्ग के चुनाव का है।
हर स्कूल अपने छात्रों को अपने अनुसार बनाता है हर संस्था अपने कर्मचारियों को अपने अनुसार वर्तन करने को बाध्य करती है । उस पर  उनका तर्क यह है कि यही अनुशासन है ।  वह भी अनुशासन सिखाने का एक सिद्धांत हे। इसी लिए इस प्रक्रिया को बालपन से है आरंभ किया जाता है।   ये समय खेलने कूदने के साथ सीखने का भी है। ऐसी परिस्थितियों में जो आसानी से बदलने के आदी हैं उनको तो इतना प्रभाव नहीं पड़ता ,पर कुछ  दृढ़ व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों का  छात्र जीवन कठिन हो जाता है।
 कहते हैं ना पेड़  की टहनी जितनी कड़क होती है उसके  लिए झुकने की संभावनाएं उतनी ही कम होती जाती हैं।  अर्थात जिद  पर अड़ने से कुछ हासिल नहीं होगा।पर अपने आचरण को समाज के अनुकूल बनाने के लिए विनम्रता भी आवश्यक हैं।
बड़े होने पर......।
 हम यदि अपने चारों तरफ के लोगों को वह जैसे भी हैं वैसे स्वीकार करने की आदत डालें । अपनी अपेक्षाएं कम कर ले ,तो हम अपना जीवन भी आसान कर लेंगे और दूसरों का जीवन भी आसान करने में मदद कर पाएंगे।
 एक बार पुनः विचार करें जिंदगी इतनी कठिन नहीं है हम उसे कठिन बना देते हैं। आप एक बार अपने शैतान बच्चे को ध्यान से देखें। वह ऐसा कोई काम नहीं कर रहा होता जो किसी अबोध बच्चे को नहीं करना चाहिए ,पर आप आने वाले खतरों से डरते हैं इसलिए उसको इसके लिए रोकते टोकते हैं जबकि वह तो अपना मासूम बचपन ही जी रहा होता है । हमर अंदर बैठा डर हम हर समय सावधान रहने को चेताता जो है।बच्चों को समझाने के    धैर्य के अभाव में हम उनके साथ कठोर व्यवहार करते हैं। वह अपना बचपना नहीं छोड़ पाते हैं इसलिए हम परेशान हो जाते हैं। 
किशोर बच्चे उत्सुकता वश बहुत कुछ ऐसा करते हैं जो माता-पिता को पसंद नहीं आता, समझाने के धैर्य के अभाव में हम उन्हें परेशान हो जाते हैं। युवा संतान के माता पिता उनकी नैसर्गिक आवश्यकताओं को नकारते हुए  उनसे धैर्य संयम की आकांक्षा रखते हैं । युवा संतान जब हम उम्र लोगों के बीच में  अपने को पिछड़ा हुआ महसूस करती है।  तब दोनों के बीच का अंतर समझ नहीं आता और वह कुंठित असंतुष्ट हो जाते हैं।
      देखा जाए तो आज का युवा हर परिस्थिति में आत्म नियंत्रण करना जानता है और प्रतियोगिता की दौड़ में सक्रिय रहते हुए सफल होना भी जानता है यह जरूरी है कि हर पालक अपने बच्चों के  मनोविज्ञान को समझे उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें उसके स्थान पर वह उनकी परेशानियां बढ़ाते हैं । इसीलिए उनकी संतानें अवज्ञा करती नजर आती हैं ।
 संतान का कर्तव्य तो अपने बड़ों कीबत सुनना है ही  पर माता पिता को भी समझना होगा। इसलिए आप स्वयं विचार करें दूसरों को बदलने के स्थान पर वह जैसा है वैसा स्वीकार करें स्वयं में धैर्य पैदा करें तो आप महसूस करेंगे कि जीवन इतना कठिन भी नहीं है।
 
 प्रभा पारीक





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