Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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काल गणना

 

काल गणना ईतिहास की करोडरज्जु है अभिलेखों में समय को दर्शाने के लिये समकालीन धटनाओं को ही प्रमाण बनाकर दर्शाता व कालगणना करता पत्रक ही काल गणना का आघार बन कर प्रकट होता हैे। भारतीय ईतिहास में समय समय परं भिन्न भिन्न पद्वियों को समय की गणना के लिये उपयोग किया गया है। क्रम वार दिन(अहोरात्र) मास व वर्ष इस तरह चक्र देखने को मिलता हेै ऐतिहासिक समय निर्देश में वर्ष को ही महत्व पुर्ण माना जाने के कारण वर्ष का उल्लेख अधिकतम देखने को मिलता है।े
ऐतिहासिक समय में किसी संवत की कोई निष्चित गणना न होने के कारण धटनाओं का उल्लेख करते समय उस काल केा समकालीन राजा के कार्यकाल से जोड कर समय को गिना जाता हैे उदाहरण के तौर पर अशोक के अभिलेखों में जॅहां जहाॅ समय दर्शाश गया है वहाॅ पर अशोक के राज्याभिषेक से देखा गया है जेसे अभिषेक के चार वर्ष कलिंग पर विजय ,अभिषेक को तेरह वर्ष पूर्ण होने पर धर्म ’-धर्म महामात्र रचा गया,चैदह वर्षेंा के बाद बुद्वकनक मुनियो के स्तूप दुगने बडे किये गय,ेंछब्बीस वर्ष होने के बाद धर्म लेख की रचना की गयी आदि आदि….यहाॅ तक कि सातवाहन वंश के हाथी गुफा लेखमें राज्याभिषेक के बाद के बाद के पहले वर्ष से तेरह वर्षो तर्क का उल्ल्ेख मिलता है।
विदर्भ वंशके दान शासको के राज्यकाल में संवत्सर वर्ष के अलावा ़ऋतु मास
पक्ष व दिवस की जानकारी मिलती है आरम्भ में .ऋतुओ फिर उसके बदले कार्तिक ज्येष्ठ जैसे मास बताये गये है। उसके साथ पक्ष को तो नही पर शुक्शब्द का प्रयोग नजर आता है तीसरी सदी में कृत संवत पांचवीं सदी में मालवगण छठी सदी में शक गुप्त नाम से भी संवंत का उल्लेख मिलता हैसंवत अर्थात संवत्सरप्राचीन काल में वैदिक काल में मास के नाम कुछ इस प्रकार थे मधु, माधव, शुक, शुचि, नभस, नभस्य,ईष,ऊर्जा,सहस,सहस्य,तपस व तपस्य, आदि
भरत में वार सात है जिनकी गणना सुर्योदय से सुर्याेदय तक मानी जाती है
इस तरह भारतीय कालगणना में वर्ष ,मास ,पक्ष,तिथि,वार,नक्षत्र, से जुडी अनेक पद्वतियों का प्रचलन दिखाई देता है अभिलेखों में दिये गये निर्देशोंमें सबसे अधिक उल्लेख वर्ष को हुआ है मास पक्ष व तिथि आदि का उल्लेख उत्तर काल के बहुत से लेखों में है। हमारी काल गणना की प्रक्रिया एक लम्बी व जटिल प्रक्रिया है।





नव वर्ष
पृथ्वि पर मनुष्य जीवन के अगनित दिन महिने साल पल पल बितता समय, नित नई रचनायें और हर घडी होता विनाश, हर पल नया जन्म हर पल मृत्यु फिर भी ,हम मनुष्यों ने समय के विभाजन को अपनी अपनी तरह से अनेको रूप व नाम दे रखे है। जो आज है वह कल नहीं रहेगा यह जानते हुये भी और यह भी जानते है कि खेाना पाना एक सतत प्रक्रिया है कुछ खो देने का मातम और पा जाने की खुशी इस पर हम मनुष्य संयम नहीं रख पाते मानव स्वभाव है…..और यह एक प्रकृति प्रदत प्रतिकिया है।
अन्तराष्ट्रीय स्तर पर समय को सैकिन्ड मिनिट घंटा दिन,सप्ताह महिना व वर्ष में विभाजित करके देखा गया हंै। पर हम उत्सव मनाते है नव वर्ष का ही क्यो…?.क्या इस लिये की गत वर्ष में हमने बहुत कुछ पाया है….. या इस वर्ष कुछ निष्चित रूप से हासिल कर ही लेंने वाले है।या पिछला सब भुला कर नये का स्वागत करने हेतु, इस आशा से की अब जीवन में शुभ हो,श्रेष्ठ हो सकारात्मक हो।
एक वर्ष को चार चरणों में विभाजित करते हुये प्रथम चरण 1जनवरी से 31 मार्च तक दुसरा चरण1अप्रैल से 30 जून तक तीसरा चरण1जुलाई से 30नवम्बर तक और चैथा चरण1अक्टुबर से 31 दिसंम्बर तक माना गया है एक वर्ष में 8760घंटे,525,600 मिनटऔर 31,536 सेकैन्ड कुल 365-2468 दिवस औसतन होते है।
वर्ष केलेन्डरांे में भी कहीं कहीं थोडी बहुत भिन्नताये पाई गयी हजैसेै विलियम हरशियुब्स व जुलियन कैलैन्डर ,पर इनमें थोडी ही असमानतायें है
यंु तो देशी नया वर्ष भारत के हर राज्य में अलग अलग समय पर अलग तरह से मनाया जाता है।हमारे भारतीय महिनो की गणना में नव वर्ष राज्यों मे विविघता भरा होता है पर यह फसलों के पक पर तैयार होने से ही जोड कर देखा जाता है नव वर्ष अन्तराष्ट्रीय स्तर पर 365 दिनो के एक निष्चित चक्र को पूरा करता हुआ,पहली जनवरी से पुनः आरंभ होता है बर्ष बदल जाता है तारीख बदल जाती है जबकी हमारे भारतीय नव वर्ष ं तिथि पर आघारित होते है। चार ऋतुआंे को समाहित करते हुये वर्ष अर्थात बारह महिने जो क्रमवार चलते है कभी दिवस अघिक भी हो जाते है दिनों की संख्या का संतुलन बनाये रखने के लिये गणना का आधार है जो अघिकमास कहलाता है।
अन्तराष्टीय स्तर पर नव वर्ष एक ही दिन मनाया जाता है फर्क मात्र सुर्यो दय का है अघिकांक्षतः इसे मनाने का तरीका करीब करीब एक ही है,
इन 365 दिनो के एकचक्र समापन पर सभी देशों में इतना उल्लास क्यों? पिछला अच्छा बुरा पीछे छोडते हुये पुर्ण आशावान होते हुये नये वर्ष का अल्लास चारों और नजर आता है।आतीशबाजी और ,प्रकाश जो नव शक्ति संचार का प्रतीक है।वहीं उत्सव आन्नद नृत्य आदि खुशी का प्रतीक है।एक दुसरे का मीठा मुह कराना आगत के शुभ स्वागत का प्रतीक है बधाई सेदेशों का आदान प्रदान शुभकांक्षा का प्रतीक इस दिन मंदिरों गिरजा घरों ,्रगुरूद्वारों में ,मस्ज्दिों में जाकर प्रार्थना करते हुये आने वाले वर्ष को सुखमय प्रार्थना रखने की आशा करते है हमारी भी यही प्राथर््ाना है कि नव वर्ष आपके लिये शुभ हो
इन 365 दिनो के समापन पर सभी देशों में इतने उल्लास पुर्ण वातावरण को देखते हुये भविष्य से सिखते हुये हम सभी अकसर नव वर्ष पर कुछ नये संकल्प लेते है।जिन्हे कुछ लोग एक ही दिन में भूल जाते है कुछ सप्ताह में पर कुछ ऐसे भी हैं जो इस संकल्प को जीवन भर निभा जाते है।

 

प्रभा पारीक

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