’’कल एक झलक जिन्दगी को देखा वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,
फिर ढूंढा उसे इधर उधर वो राहों पे मेरी आॅख मिचोली कर मुस्कुरा रही थी,
एक अरसे के बाद आया मुझे करार,वो सहलाके मुझे सुला रही थी।।
मैने पूछा क्यों इतना दर्द दिया कमबख्त तुने,.......वो हॅसी और बोली जिन्दगी हॅॅु तुझे जीना सीखा रही थी।
कभी सभा में ऐसे ही मेरे द्वारा पूछा गया प्रश्न स्वयं मुझे ही झकझाोर कर रख देगा यह मैने सोचा भी नहीं था। क्या हम स्वयं ही स्वयं के सबसे बडे शत्रु हैं
म्ेारा प्रश्न हैं, था क्या आप अपने आप से प्यार करते हैं सभी का जवाब हाथ उठाकर होता हैं हाॅ.... मै अगला प्रश्न पूछती हूॅ क्या आप अपने आप से सच में बहुत प्यार करते हैं उसका जवाब भी सभी हाथ उठाकर का हाॅ ही होगा..... और तब मै अगला सवाल पूछती हूॅ कि क्या आप किसी और को भी प्यार करते हैं माता पिता भाई बहन बच्चे दोस्त कोई भी हो... जिनकी लम्बी सूची हो सकती हैें और मेैं फिर कहती हूं तब क्या आप उनको जहर दे सकते हैं ....कैसा प्रश्न है.....जब आप किसी को प्यार करते हैं तब आप किसी को जहर दे ही कैसे सकतें हैं तब मेैं कहती हुं ..... कि तो फिर आप... अपने आप को इतना जहर कैसे दे सकते हैं ....सब चुप......सकतें में आ जाते हैं लोग मेरी बात सुनकर.....
सच हैं हमारी हर बार कि शिकायत गिला शिकवा हमारे अंदर सीधा जहर बन कर उतरता रहता हैं....क्यों कि गुस्सा,शिकायत जलन,आक्रोश,द्वेष और नफरत बुराई ये एक तरह के भाव हैं पर मनुष्य शरीर और मन के लिये जहर का काम करते हैं तो कोई जानते बुझते भी अपने आप को जहर कैसे और क्यों दे सकता हैं पर हम अकसर अन्जानें में अपने स्वयं को जहर देने से रोक नहीं पाते हमारा हर बार का तनाव कंुठा जिसे हम फªस्ट्रेशन भी कहते हैं हमारे अंदर अल्पतुल्य मात्रा में जहर उड़ेलता रहता हैं हर झगड़ा हमारे शरीर में कुछ मात्रा में अपना जहर छोड जाता है इसके प्रमाण की मात्रा, का निर्धारण हमारी प्रतिक्रिया के समय और भाव तिव्रता से होता हैं जैसे हम परेशानी में धीमा जहर गुस्से में उससे तेज जहर और ईष्या कुंठा तनाव में सीधा जहर अपने अंदर उतार लेते हैं जो हमारे अंदर पहूॅच कर डिज़ीज पैदा करता हैं डीज़िज का अर्थ हैं नाॅट एट ईज़ अर्थात हमारे सिस्टम में गड़बडी
जब हम हमारे सिस्टम में एट ईज़ नहीं हैं तो शुरूआत छोटी मोटी गडबडीयों से जैसे सरदी खाॅसी गला सूखना त्वचा में जलन सूजन आदि हैं जिसमें उत्तरोत्तर वृद्वि होती रहेगी जब तक हम अपने सिस्टम में ईजी नहीं हो जाते
गुस्सा चालीस वर्ष चालीस महिने , चालीस सप्ताह, चालीस दिन, चालिस घंटे चालीस मिनट, चालीस सैकेन्ड का भी हो सकता है। गुस्सा आक्रोष का समय सौपान जितना होगा उसी अनुसार उसका कुप्रीभाव भी होगा। सरदी खाॅसी ,अस्थमा डायबीटिज़ कैसर रक्त चाप आदि सभी आक्रोष रोष ईष्या के परिणाम हैं जो मानव प्रक्रिया हैं इसलिये पहला प्रयास यही हो कि, इसे लम्बा न चलने द,े जब भी किसी से शिकायत हो,अपना कोई पैन एक जगह से दुसरी जेब में रखे कोई धागा इधर से उधर बाॅधे अथवा अपने पाॅवों को अलग तरह से घुमाये, गुस्स्ेा आक्रोष शिकायत को विराम मिलेगा, गति कम होगी और हम गहरा जहर अपने अंदर उतारने से बच जायेंगे। आप अपने संरक्षक बनिये दुश्मन नहीं।
खुश रहिये मुस्कुराते रहे दुसरो के चैहरों पर खुशी की कामना करते रहें
प्रेषक प्रभा पारीक
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