नमस्कार सम्मान का सूचक है। क्या आपने सोचा है कि नमस्ते अथवा नमस्कार शब्द का परिचय कैसे व किसने कराया इसका महत्व क्या है और नमस्ते हाथ जोड कर ही क्यों किया जाता है अलग अलग देशों में नमस्कार की अपनी अपनी परंम्परायें है भारत में नमस्कार का एक प्रचलित चलन है अलग अलग चरणों में यह अलग अलग भाव से प्रकट होता है नमस्कार करते समय करने वाले की पीठ आगे की और झूकी हुयी छाती के मध्य में हथेलियां जुडी हुई व अंगुलियो आकाश की ओर होती है इस मुद्रा के साथ वह व्यक्ति नमस्ते या नमस्कार बोलते हुये अभिवादन करता है हाथेंा की इस मुदा्र को नमस्कार मुद्रा कहते है नमस्कार एक संस्कृत शब्द हैजो सस्कृत के नमः शब्द से लिया गया है।जिसका अर्थ है प्रणाम करना प्रत्येक व्यक्ति में एक ईश्वरीय तत्व विद्वमान हैजिसे हम आत्मा कहते है।नमस्कार करते समय एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति की अंतर शक्ति का अभिनन्दन करता है।नमस्ते और नमस्कार पर्याय होते हुये भी उन दौनो के बीच एक अतंर महसूस होता हैंनमस्कार शब्द नमस्ते से ज्यादा सृजनशील व सात्विक हैहाथ जोड कर नमस्ते या नमस्कार या अभिवादन करना एक सम्मान है एक संस्कार है वैसे हाथ जोडने की क्रिया एक योगीक प्रकिया भी कहलाती है हमारे शरीर की हर हरकत को वैज्ञानिक आधार दिया गया है शरीर की क्रियाओं को अत्यंत महत्वपुर्ण मान कर वैज्ञानिको ने इसे योगिक क्रिया माना है जो हमारे शरीर के लिये अत्यंत लाभदायक है।बडों को हाथ जोड कर प्रणाम करने का एक वैज्ञानिक महत्व भी है।नमस्कार मन वचन शरीर तीनों में से किसी एक के माध्यम से किया जाता है।
लाभ व इसका महत्व
हमारे शरीर में हाथों से तंतु सारे क्रियाओं से जूउे है।नमस्कार करते समय हाथों को जोडा रखने हथ्ेलियों को दबाने से घडकनों को विस्तार मिलता हैऔर शरीर की क्रिया एक सकारात्मक आदेश एक नये जोश के साथ सुचालित होने लगती है मस्तिष्क में सक्रियता आती हैजिससे उर्जा का संचार एकाएक बढता हैउक्त सुचार से मन शांत और चित्त में प्रसन्नता आती है ह्रदय की सुद्रढता व निर्भिकत बढती है।
नम्रता का प्रतिक भी है नमस्कार
भारत में हाथ जोड कर नमस्कार करना मनोप्रकृति को भी सुबल देता है हाथ जोड कर आप जोर से बोल नहीं सकते अधिक क्रोध नही कर सकते और भाग नही सकते यह एक एैसी क्रिया है जो हमारे धैर्य और हमारे व्यवहार पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाती हैओर हमें अधिक नम्रता सिखाती हैइस प्रकार प्रणाम करने से सामने वाला अपने आप ही विनम्र हो जाता है नमस्कार अर्थात दुसरे को दिव्य रूप में देखना यह आघ्यात्मिक शक्ति को बठाता है और आंतरिक व्यक्तित्व को आकर्षित करता है यदि नमस्कार ऐसे आघ्यात्मिक भाव से किया जायकि वह सामने वाले व्यक्ति की आत्मा को नमस्कार कर रहा है यह हमारी कृतज्ञता व समर्पण की भावना को भी जागृत करता हैजो कि हमारे आध्यात्मिक व व्यवहारिक विकास में सहायक है।
महत्व पुर्ण पहलू
क्यों कि नमस्कार को आघ्यात्मििक रूप में देखा जाता है दाहिना हाथ हमारे धर्मऔर बायां हाथ हमारे विचार व दर्शन का होता है नमस्कार करते समय बायां हाथ दायें हाथ से जुडता है शरीर में दाई ओर झडां बांई नाडी ऐसे में नमस्कार करते समय झडा ,बाई और पिंगला नाडी होती है ऐसे पिंगला नाडी के पास पहुचती हैऔर सर श्रद्वा से झुका हुआ होता हैहाथ जोडने से शरीर के रक्त सुचार में प्रवाह आता है मनुष्य के आधे शरीर में सकारात्मक आयन और आधे शरीर में नकारात्मक आयन होते है।हाथ जोडने पर दौनो आयनों के मिलने से उर्जा का प्रवाह होता है जिससे शरीर में सकारात्मकता का समावेश होता है किसी के प्रणाम करने के बाद आर्शिवाद की प्राप्ती होती है और उससे हमारा शारीरकि व मानसिक विकास होता है
नमस्कार के प्रकार
नमस्कार दो तरह का होता है पहला ह्रदय नमस्कार जिसमें दोनों हाथों को हम सीने पर रखते है आंखे बंद की जाती है और सिर को झुकाया जाता है यह नमस्कार अकसर हम भगवान के सामने करते है या किसी धर्मिक स्थान के सामने झूकते गुजरत हुये करते हैं दुसरा है मस्तक नमस्कार जिसमें हाथें को अपने भैाहो। बीच रखकर सर झुका कर और हाथों को ह्रदय के पास ला कर नमस्तें किया जाता है मस्तक नमस्कार हमें धन्यवाद करना सिखाता है यह नमस्कार किसी कार्य को सफलता पुर्वक सम्पन्नता का प्रतिक माना जाता है।
अस्तु प्रभा पारीक
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