नवली नवरात्री
पिछले पंद्रह दिनों से स्वाती अपनी सखियों के साथ रास गरबा के नये आधुनिक स्टैप सिखने में व्यस्त थी और मां उसको बार बार कह रही थी तुझे जैसे लहंगा औढनी चाहिये वो ले आ फिर नया स्टाक निकल जायगा । जानती थी स्वाती कि जब तक वो नहीं जायेगी उसकी सहेलियाँ भी अपने लिये कुछ नहीं लायेंगी ं। इस बार राजकोट शहर में गरबे का भव्य आयोजन होने वाला था। रोटरी क्लब भी इस आयोजन से जुड़ गया था। जहाँ रोटरी क्लब जिम्म्ेदारी ले लेता है । आयोजन स्वतः ही भव्य और उत्साह उमंग भरा हो जाता है।
स्वाती अपनी कल्पनाओं में खोई दुकान दुकान चक्कर लगा रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपने दोस्त दिव्य को फोन किया और वह भी अपने दोस्त के साथ तुरन्त आ गया। दिव्य व उसके दोस्तों ने कौन से दिन कौनसे रंग का केडियु ( गरबों में पहनी जाने वाली मर्दाना पोशाक) पहनने वाले है। सब तैयार कर लिया था। उसने स्वाती को इशारे से बताया वह लाल वाला चनिया चोली सैट अच्छा है स्वाती तुम पर बहुत फबेगा। उसके बाद उसक सहेलियाँ भी उसकी हां में हां मिलाने लगी थी स्वाती ने जोर से डपट कर कहा ’’क्या हां…..’’पिछले साल भी तो एैसा ही कोडिंयों के काम का ही पहना था। इस बार तो कुछ अलग होना चाहियें। दिव्य के साथ आये दोस्त के कमैन्टस स्वाती को नागवार लग रहे थ,े पर वह चुप रही। बस आँखे तरेर कर दिव्य को स्वाती ने सावधान किया था। स्वाती को पीला (आभला भरत) कांच के काम का सैट जच गया। स्वाती बचपन से दिव्य के साथ पढ रही थी। इसलिये माता पिता को अपनी पुत्री के चुनाव पर कोई एैतराज नहीं था। क्यों कि दिव्य एक सौम्य, मधुरभाषी, संस्कारवान लड़का था। पर वैसे भी गुजरात में गरबों के अवसर पर अभिभावक वर्ग अपनी युवा संतान को गरबे में आन्न्द करने की पूरी छूट देता है।
मैं सोचती हुं गुजरात के युवा नौ दिनों तक पूरी रात गरबा करने की इतनी इतनी शक्ति कहाॅ से लाते हैं। पूरी रात सजे धजे युवा गरबे गीतों की मोहक ताल पर कभी तेज कभी घीमी गति से नाचते हैं और हम देशवासियों का ही नहीं पूरे विश्व का मन मोहने की ताकत रखते है।
उनकी रंग बिरंगी परम्परागत पोशाके सबका मन मोह लेती हैं और गरबांे के इर्द गिर्द लगनेे वाली लजींज पकवानों की दुकानें सोने पर सुहागा का काम करती हैं। स्वाती व उसकी सहेलियों ने तीन नये सैट खरीदे।एक सा हरे रंग का कच्छी भरत (कच्छ की कढाई)का सैट लिया। एक जामनगरी भरत का सैट जो काले रंग में था। दिव्य को बहुत पसंद आया, उसने भी उस दिन सफेद केडियू के साथ लाल सांफा पहनने का निर्णय किया। वैसे भी गुजरात में लडकियाँ लड़के गरबों के दौरान आपस में चनिया चोली और गहनें अदल बदल कर पहनते ही हैं। अब स्वाती ने दिव्य को जाने को कहा और वह अपनी सहेलियों के साथ आभूषण पसंद करने लगी। गरबे में जितना महत्व परम्परागत पोशाक का है उतना ही महत्व आभुषणों को भी है स्वाती ने अपने लिये लाम्बु डोकियु (लम्बा हार) कमर बंदा भी मैचिंग का लिया। स्वाती को आक्सीडाईज़ सैट चाहिये था जिसमें हथ फूल मांग टीका और सेर लगी हो, प्यारी सी झुमकियों को देख कर स्वाती को लग रहा था ये तो अभी ही काँनो ंमें डाल ली जायें । जामनगरी भरत की मेाचडी और पचरंगी चूनर।
अब नवरात्री भी झूमती गाती आ गई थी। भक्त पूजा अचर्ना में व्यस्त थे। सारा शहर गरबों के रंग में रंगा नज़र आ रहा था। पिताजी ने पहले दिन ही कह दिया था। ’’तुम पर विश्वास करके पूरी आजादी दे रहा हुं मेरी बात ध्यान रखना’’ कुछ संताने अपने माता पिता के विश्वास को तार तार भी करती नज़र आती है।ं
पहले नवरात्रे रात नौ बजे मां अम्बे की आरती के साथ गरबे की शुरूआत हुई। आवो……. ये वेला गरबे रमवा आवो…. की मधुर पुकार के साथ…। और अभयसिंह राठोर की थनगनती आवाज से … ’’रंगे रमे आन्नदे रमें… आज माड़ी दुर्गा गरबे रमे…..’’ आव्हान हुआ और रग रग में झन्कार भरती मघ्ुार धुन के साथ ही सबके पाँव थिरकने लगे। तालियों की ताल के साथ दिल कश संमा बंधते देर नही लगी।
दिव्य का दोस्त स्वाती को बार बार देख रहा था। जिसे स्वाती ने इग्नोर किया। उस दिन सरकारी आदेश के कारण रात बारह बजते ही गरबा बंद कर दिया गया। गुजराती प्रजा तो वर्षो से पूरी रात गरबा खेलने की आदि है। उन्हे बारह बजे वाला कानून बेमानी लग रहा है। अनेक प्रतियोगितायें भी थी। बेस्ट डांसर, बेस्ट स्टाइलिश डेªस, फास्ट स्टैप, सती धजी गुजरातन आदि ।।
इस वर्ष नियम का सख्ती से पालन हुआ। गरबों को बारह बजे बंद कर दिया गया था। साधारणतय गरबो के अंत में दो घंटे का समय रास के लिये रखा जाता हेै। ’रास भगवान् राधा कृष्ण की अराधना है’ हाथ में डांडिया लिये राधा कृष्ण बने गोप गोपी बने युवा जोडे। ’’मथुरा मां खेल खेली आव्या ’’। सुन्दर शब्दों के साथ रास का आनन्द लेते थे।.
यह गरबे देवी दुर्गा की अराधना का स्थल होता था। गरबे का वास्तविक अर्थ मिटटी का कलश है। जिसमें प्रज्वलित दीपक रखकर भक्ति पूर्वक देवी के चारों और घूमते गाते है। ‘साथिया पुरावो आजे दिवडा प्रकटाओ’ जैसे प्राचीन गीत थे। अब इसके बदले रूप में कलश लुप्त हो गये नये गीत आ गये है ’सईर महारो साहिबो गुलाब नु फूल’। अब भक्ति के स्थान पर इसने महाउत्सव का रूप ले लिया हैं ।
सप्तमी के दिन विशेष आज्ञा लेकर रात दो बजे तक गरबे की परमिशन मिल गई थी। स्वाती उस दिन बहुत अच्छी तरह तैयार हुई। कालेज की और सहेलियाॅ भी आज उसी आंगन में गरबा करने आने वाली थी। उस दिन स्वाती जम कर नये स्टैप कर रही थी। गरबा अपने उच्चतम उत्साह पर था। तेजी से गरबा करने के चक्कर में दिव्य का कुर्ता फट गया। दिव्य का घर वहांँ नजद़ीक ही था। पर ट्रैफिक को देखते हुये उसे एक घंटा तो लगने वाला ही था। स्वाती को बताकर दिव्य चला गया। स्वाती गरबा करती रही कुछ देर बाद दिव्य के दोस्तों ने व स्वाती की सहेलियों ने गरबे से निकल कर कोल्ड ड्रिन्क पी आने का निर्णय किया । सभी हंसते मस्ती करते दुकान पर कोल्ड ड्रिन्क पीने लगे स्वाती की कुछ सहेलिया बारह बजे ही चली गई थी। स्वाती को उनके यह रंग ढंग बिल्कुल पसंद नहीं थे गरबे के नाम से मिली आजादी को इस तरह लाभ उठाना गलत है। प्रतिवर्ष उम्र के इस नाजुक दौर में भटकाव से कई जीवन बरबाद होते देखे गये हैं । स्वाती की अंतरंग सहेली किसी के साथ इधर उधर थी। अचानक स्वाती को लगने लगा उसका सिर चकरा रहा है। स्वाती ने फोन उठाया और दिव्य को फोन मिला दिया। अभी वह लडखडाती आवाज में इतना ही बोल पाई थी दिव्य मुझे… कि……। एक बार दिव्य को लगा शायद एैसे ही फोन किया हो पर स्वाती की आवाज को सुनकर उसे अंदेशा हो गया था, कुछ गडबड है । दिव्य ने फर्राटे से अपनी मोटर साईकिल भगाई । गरबा स्थल पर चैक में उसे अपने ग्रुप में से कोई गरबा करता नहीं दिखा। वह स्वाती के नम्बर पर बार बार फोन मिला रहा था पर उसका फोन बंद आ रहा था। कुछ देर में स्वाती की खास सहेली बेचेन सी आती नज़र आई दिव्य को उसे देखकर राहत हुई। उसने बताया करीब पौन घंटै से मै भी सबको ढूढ रही हुं न जाने कहाँ चले गये सब।
अब दिव्य ने अपने मन का अंदेशा उसे बताया। सामने से आते एक मित्र ने बताया कि शायद स्वाती को चक्कर आ गया था। तुम्हारे दोस्तों का समूह उसे अपनी गाड़ी में ले गया है। अब दिव्य की घबराहट बढ़ने लगी थी। दिव्य के ग्रुप के कुछ लडकेां पर उसको बिल्कुल विश्वास नहीं था। भयभीत दिव्य अपने दोस्तों को फोन पर फोन कर रहा था अंत में एक दोस्त ने बताया कि वह होटल के बाहर खड़ा है बाकी सभी स्वाती के साथ अंदर गये हंै। स्वाती को आराम की जरूरत है। दिव्य अपने साथ पुलिस को लेकर होटल तक कैसे पहुँचा उसका जी जानता है। घड़कते दिल से पुलिस को सब हरकत बताई। अपने मन का डर बताया और दिव्य सही समय पर होटल पहुँच गया । बाकी सारे विक्रत सोच वाले दोस्त बैठ शराब पी रहे थे। कुछ समय बाद स्वाती को होश आ गया। जिस दोस्त ने उसके ठन्डे पेय में कुछ मिलाया था। उसने भी पुलिस के सामने अपनी हरकत कबूल करी। पुलिस ने होटल वाले को भी अपनी गिरफ्त में लिया। स्वाती आज एक बहुत हादसे अपमान से बच गई थी।
बच्चों को आजादी देने के साथ उन्हें सावधान होने की शिक्षा भी दें। स्वाती जैसी कितनी लड़किया गरबे की रात में इस तरह के षडयंत्र की शिकार होती हैं। उनके इस कृत्य मंे होटल वाले भी अपनी कमाई के चक्कर में सहभागी होती हैं। होटन गेस्ट हाऊस दुकान, वाले कुछ घंटों के लिये बड़ी रकम ऐंठ कर मौन रहकर सब होने देते हैे। पुलिस की लाख चैकसाई के बावजूद हर वर्ष एैसी घटनायें हो ही जाती हैं। हमारी युवा पीढ़ी के पास भटकने के अनेक तरीके हैं।
हमारे पर्व त्यौहारों का असली स्वरूप जाने कहाॅ लुप्त होता जा रहा है । स्वतंत्रता का लाभ उठाता ये युवा वर्ग क्षणिक सुख के लिये चारित्रिक पतन की और अग्रसर है। शायद ही कालेज में पढते किसी भटके हुये युवा जोडे़ ने अगले गरबे तक एक दूसरे का साथ निभाया होगा। एैसे भी देखा गया है कि बच्चेंा को आजादी देकर अभिभावक बेफिक्र हो जाते है अपनी संतान पर विश्वास करने से पहले आज के युग के भटकने के साधनों पर विचार कर लेना चाहिये। आपकी संतान निर्दोष हो तो भी चारों तरफ उन्हें अपने जाल में फसंाने के अनेक साधन मौजूद हैं। उनकी सजगता उन्हें अपनी संतान की करतूतों को उजागर होने के पश्चात समाज के सामने शर्मिन्दगी से बचा सकती है अथवा कुछ दिनों के बाद जब वह एैसे डाक्टर की तलाश करेगे जो चुपचाप उनकी बेटी का गर्भपात कर दे। उसमें होने वाले मानसिक तनाव व अन्यथा खर्चो से बच सकते है। आजादी देते समय यह न भूले की यह उम्र के किस नाजुक दौर से गुज़र रहे हैं ।
आज अष्टमी को देवी पूजा के बाद स्वाती ने अपने बारे में कई अच्छे निर्णय लिये। उसे दिव्य के अलावा किसी पर विश्वास नहीं करना अपनी सहेलियो ंका साथ कभी नहीं छोड़ना और सावधान रहना है। समुह में किसी ना किसी के माता पिता वहाॅ उपस्थित रहें तभी एैसी हरकत करने वाला पर थोड़ी नजर रखी जा सकती है। प्रेषक प्रभा पारीक भरूच गुजरात
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