Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नेता और भगवान

 

नेता और भगवान

एक दिन भगवान को, भक्त वत्सल राम को ।
रोक लिया राह में पुछने की चाह में।
दया का प्रमाण क्युं हो गया कम माया तुम्हारी क्या समझें हम ?
हे राम आप तो भगवन दीनो के आप नाथ भगवन बोले राम तब तु ही बतां दया की मात्रा का माप बता। अब और ना मुझ को सता तेरी दीन की व्याख्या बता। भत्त तब बोला अति प्यार से बडे ही ग‘भीर सोच विचार से दीन तो होता बस दीन है प्रजा तत्रं में सत्ता विहीन है दिलवादो उसको कोई नाम तुम
सत्ता का कोई मुकाम तुम। हिचकोले खाती नैया तर जाये सत्ता भंवर मे किनारा मिल जाये। तथास्तु का बटन राम जी ने दबाया दीन मुस्काया फिर ठहाका लगाया। राम जी को अब छोड पीछे लग गया जनता के पीछे। पटखनी दे जनता को दी मात दीन अब बन गया दीनानाथ। सत्ता के खेल में अपना ना बेगाना राज नेता की नस्ल को अब पहचाना। देर से समझा शायद यही मेरा कसूर है राम जी भी अब सोचने पर मजबरू है।

 

 

प्रभा पारीक

 

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