निर्मल निश्छल प्रेम शबरी का
सीता हरण के पश्चात माता सीता की खोज में राम लक्ष्मण दण्डकारण्य में अपने पथ पर अग्रसर हैं मन में भरा है संशय, बेचेन है मन, सीता की खोज कहँा करे कौन उन्हें सही मार्ग ले जायेगा?कंटको भरा मार्ग, विरीत परिस्थितियांँ और दुर्गम राहें। फिर भी चलते रहे राम आगे आगे लक्ष्मण पीछे थे। जिसने भी सुझाया वही मार्ग पर चलते चलते अंत में वह पहुँचे मतंग ़ऋषि के आश्रम में। हम मानव तो यही विचार कर सकते हैं कि यह मार्ग माता माता सीता की खेाज का था। पर राम थे जिस भी राह में चले दीन दुखियों के उद्धार के साथ पापियों का वध भी करते रहे और उसी क्रम में भगवान राम लक्षमण सहित पहुँचे थे। मतंग ऋषि आश्रम के नजदीक। जहाँ वर्षेा से प्रतीक्षा कर रही थी माता शबरी राम की।
राम के चरण जैसे ही उस ग्राम में पडे़ उस स्थान का पत्ता पत्ता फूल,वृक्ष,पक्षी खिल उठे थे। मंद समीर बहने लगीं वातावरण में एक अलौकिक सुगंध प्रसर गई। हवाओं ने राम आगमन का संदेश प्रतिक्षारत भीलनी तक भी पहँुचा दिया। जो राम के जन्म से पूर्व से ही तो इंतजार कर रही थी। राम जिनके दर्शन की शुभ घड़ी आज आई थी और उस पल एक टक निहारते रहने के बाद शबरी ने पूछा था।
’’कहो राम शबरी के डीह ढूंढने में कष्ट तो नहीं हुआ ?
कैसा पल था न स्वागत का आडंम्बर न लाव लश्कर ,राम खडे़ है शबरी की कुटिया में वनवासी भेष में भा्रता लक्ष्मण के साथ।
तेजस्वी मुख, पर उदासी के कारण कुछ कुम्लाया सा है और शबरी के प्रश्न पर राम मुस्कुराये थे ’’यहाँ तो आना ही था मां कष्ट का क्या प्रश्न।’’और उत्साहित शबरी अश्रुभरी आँखों से निहारती रही ’’जानते हो राम तुम्हारी प्रतीक्षा में जन्म पूरा बीत गया,पर राम मेरा जीवन आज धन्य हुआ। तुम्हारा क्या स्वागत करूं, तुम्हें क्या खिलाउं बस निहारती रहुं यही मन है मेरा’’ और शबरी ने राम लक्ष्मण का स्वागत किया वन के खटटे मीठेे बेरों से। शबरी एक एक बेर का स्वाद चख कर राम को खिला रही थी। राम खा रहे थे और लक्ष्मण खाने का अभिनय मात्र कर रहे थे शबरी ने वर्षो के इंतजार में स्वयं को इतना राम से जोड़ लिया था कि उसका मन किसी अप्रिय स्वाद की वस्तु को राम तक पहुँचाने के लिये भी तैयार नहीं थी। बेरे झूठे हैं यह विचार शबरी के मन में आया ही नहंी था। वैसे भी मां अपने बच्चों को अपना झूठा निसंकोच खिलाती ही है। शबरी के बेर नहीं थे जैसे आने वाले समय के लिये रक्षा कवच थे। जिनकेा खाने का लक्ष्मण अभिनय मात्र कर रहे थे तभी तो राम रावण के
युद्ध के समय लक्ष्मण मूर्छित हुये थे। वह कहाँ समझ पाये थे भीलनी के उन खटटे मीठे बेरों का रहस्य। वह तो बस अनुगामी थे राम के ।
तब शबरी ने राम को अपने इंतजार के पलों की स्थिती स्पष्ट करते हुये कहा था ’’भक्ति के दो भाव होते है एक मर्कट भाव दूसरा मार्जर भाव बंदर का बच्चा जैसे अपनी पूरी शक्ति लगा कर अपनी माता के पेट को कस कर पकड़े रहता है कि वह गिर न जाये उसे सबसे अधिक भरोसा अपनी मां पर होता है यह ’भक्ति का एक भाव’ है भक्त अपने इश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है दिन रात उसकी अराधना करता है पर राम मैने यह भाव नहीं अपनाया मैने ’मार्जार भाव’ अपनाया मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भांति थी जो अपनी मां को पकड़ता ही नहीं बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है जानता है मां है ना स्वयं मेरी रक्षा करेगी और सच में मां उसे
मुंह में टांगे रहती है मैं भी निश्चिन्त थे राम तुम आओगे’’ राम एक हल्कि स्मित से शबरी को देखते भर रहे। आज कहा जा सकता है कि राम ने रावण से युद्ध केवल अपनी शक्ति के बल पर नहीं वरन शबरी जैसी माताओं के आर्शिवाद के सहारे जीता था।
प्रेषक प्रभा पारीक
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