Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राजस्थान का लापता संगीत और गायन शैली

 

 

स्ंागीत सिर्फ दिलांे को जोडने का काम नहीं करता बल्कि वह दो सरहदों को भी मिलाने का काम करता हैं। संगीत की कई ऐसी विद्यायंे हैं जो अपने-अपनें अंदाज से देश ओर दुनियां में सम्मान पाती रही हेंैं। कुछ संगीत शैलियों के कलाकार गुमनामी के अंधेरे बावजूद अपने संगीत प्रेम से बधें हैं इन कलाकारो नें देश के हर कोने में अपनी प्रस्तुती दी और अपने शहर प्रदेश का नाम रोशन किया हैं।
राजस्थानी शैली की एक अनोखी परम्परा हैं जो इसी श्रंखला में श्रंगार रस से भरी हैं ’’गाली बाजी’’ जयपुर की प्रसिद्व गाली बाजी परम्परा को आज तक सहेज कर रखने वाले कलाकार रामनारायण शर्मा ने अनुसार कहने को तो इसको ’’गालीबाजी’’ कहा जाता हैं पर इसमें बडे प्यार से विरोधी ग्रुप एक दुसरे का नाम लिये बिना ऐसे गाली देते हैं, कि गुस्सा होने के बदले आदमी मुस्कुराने लगता हैं यह कला नुक्कड और पान की दुकानों पर जयपुर के स्थानिय बोली में बतियानंे की है।ं यह परंम्परा पहले जयपुर में 14 अखाडों होती थी।पर अब तो यह चार पांच के समुह तक ही सीमित हो कर रह गयी है। रामनारायण कें अनुसार वह सात वर्ष की आयु से ही इस परंम्परा से जुडे हुये हैं। आज 80 वर्ष की आयु में भी यह परम्परा जारी हैं। यह कला श्रंगार रस से भरी हेै,ंजो लोगों के चेहरो पर मुस्कान लाने का काम करती है।ंटीवी के बढते प्रभाव ने इस कला को कमजोर किया है,ंलेकिन उनका विश्वास है, कि कुछ लोग इस परंम्परा को जीवंत रखेगें।ं
आगे कहे अनुसार संगीत सिर्फ दिलों को जोडने का ही काम नहीं करता हैं बल्किी यह दो सरहदों को मिलाने का काम भी करता हैं। संगीत एक एैसा साधन हैं जो दिल की आवाज को दिल तक पहुँचाने में पलांे का समय लगाता हें मांड जैसी कलाओं से जूडे कलाकार हमेशा धनवान हो एैसा सदा सम्भव होता नहीं हैं।
अब मंदिरों और मेलों में बजता अलगोजा,
जयपुर का ---अलगोजा वादक बद्री नारायण चैधरी ने बताया कि बांस से बना वाद्य यंत्र अलगोजा अपनी बनावट के और मधुर स्वर लहरियों से हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहा हैं जयपुर विरासत फाऊन्डेशन जैसी संस्थाओं ने इस वाद्य यंत्र के जरीये देश के कोने कोने में प्रस्तुती दिलवाने का काम किया हैं आज यह वाद्य जयपुर टांक जेसी जगहों पर मंदिरो और तेजाजी के मेलों में बजता नजर आता हैं इस समय अलगोजा को बनाने वाले कारीगर भी कम हो गये हैं इसे बजाने की परंम्परा को पहले परिवार का हर सदस्य निभाता था पर अब बच्चों से लेकर बडे तक सरकारी व कारपेरेट कंपनी में नौकरी करने में रूची रखते हैं
मांड गायकी के लिये स्कूल खुलना जरूरी हैंे देश भर में मांड गायकी में अपनी पहचान बनाने वाली गायिका रेहाना मिर्जा ने बताया की मुझे मांड गायकी की जानकारी बचपन से मिली मां ओर मौसी अकसर मांड गायकी की जानकारी मुझे दिया करती थी मंैे उनके साथ भी परर्फाम करने का अवसर मिला इसें बाद मेंने गजल भजन लोकगीतों को भी इसके साथ जोडा और मंाड गायकी में मिठास घोली।मांड शैली में ऋतु श्रंगार के साथ अनेक मानव को आकर्षित करने वाली बांतों का चित्रण हैं जो शोख चंचल भावों से व्यक्त किया जाता है।
आज मांड गायकी सीखने वालों की कमी है ंजिस कारण यह कला पिछड रही है ंमांड गायकी को लेकर सामाजिक संस्थान और स्कूल खोले तो इसे आगे बठाया जा सकता हैं।मांड गायकी में महिलाये ही नहीं पुरूषो ंकी संख्या भी कम हो रही है ंइसे बचाने के लिये सरकार व लोगों को आगे आना होगा हम हमारी सेवाये देने को तैयार हैं।तभी यह अनूठी परम्परा कायम रह पायेगी।

 

 

 

प्रभा पारीक

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