Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रिश्तों को बाजार में नहीं खरीद सकते

 

आपने कभी सुबह उठकर सूरज को उगते हुये, चिड़ियाओं को चहचहाते हुये,आकाश में स्वछंद उडते हुये पक्षीयो को , हवा में झूलती पेड़ों की डालीयों ,पवन के हिलोरे से पानी की लहरों की अठखेलियां ,जैसे प्राकृतिक नजारे देखे हांेगे?, तो आप समझ गये होंगें मे। कितने आनन्द दायक पलों की बात कर रही हूॅ। इनको देखना और महसूस करना एक सुखद अहसास हैं जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। पा सकते हैं दिन भर की आपा-घापी के बाद सकून के कुछ पल ,सारी चिन्ताओं को छोड़ छाड कर आप निहारेंगें तो महसूस होगा कि ये नजारे हमें कितना कुछ सीखाते हैं ं यूं तो प्रकुति ने सभी को भिन्न-भिन्न बनाया हैं पर इनकी गति लय ताल और प्रकृति का आपसी सामजस्य देखने योग्य हैं। हर वस्तु के हानी लाभ के तराजु पर तोलने वाले हम लोग ...इनकी कीमत को कभी नहीं समझ पाते विनिमय के मुल्य पर आधारित मानसिकता के कारण हम कहाॅ इसके सही उपयोग को समझ पाते हैं उदाहरण के लिये वायु का कोई मोल नहीं पर फिर भी वह हमारे लिये बहुत उपयोगी है। मुल्य और कीमत दो अलग अलग चीजें हैं जिसको मुल्य की समझ हैं उसके लिये प्रकृति से जुडे रिश्ते से हर चीज बेशकीमती हेैंे। जिसे हम बाजार से नहीं खरीद सकते। हमारा प्रकृति के साथ सम्बंध भी कुछ एैसा ही हैं मानव से मानव का आपसी सम्बंध भ्ंीद कुछ इसी तरह का हैं आप बाजार में जाकर एक किलो पा्रकृतिक नजारे अथवा दो पैकिट माॅ का दुलार नहीं मांग सकते। यह सच हैं कि संबंधों की परिपक्वता समय पा कर आती हैं पर आती तभी हैं जब हमें उनकी कीमत पता हो।
साठ फिट लम्बा बांस सीधे उपर की और बठता हैं उसमें हर दस या बारह इंच के बाद एक गांठ पड़ती हैं उस गांठ पर बांस का विकास कुछ समय के लिये रूक जाता हैं शायद यह रूकावट कुछ समय के लिये उसे पीड़ा व अवसाद देती हैं और इसके आगे भी वह कई तरह के संधर्षों को झेलता है।जैसे जैसे उपर उठता हैं उसका विकास ज्यादा होने के साथ सथ ज्यादा उपयोगी होता जाता हैं , मजबूत भी होता हैं । मानवीय संबंध और प्रकृति के साथ तादाम्य के लिये इन्ही बांस की गांठों के अवरोधों से गुजरने के बाद ही परिपक्वता आती हैं बांस की ऊँचाईयों को मानव की सफलता परिपक्वता के साथ जोड़ कर देखोंगे तो समझ आने लगेगा कि जीवन में जितनी सफलता आती जायगी जीवन की सरलता लुप्त होगी और उसका स्थान संर्धष ले लेगा। बंास की उपर की और बठने की गति उसके साथ ही बठती हैं उसकी मोटाई और उस मोटाई ओर ऊँचाई के साथ उसमें लचीला पन विकसित हो यह भी जरूरी हैं क्यों कि हवा के तेज थपेडों का सामना वह अपने लचीले पन से ही कर पायेगा। अधिक गर्मी बरसात सहने की ताकत ही उसे और उपर की और ले जायगी और तब बनेगा वह एक मजबूत बांस जो मानव के लिये एक अत्यंत उपयोगी साधन होगा। इन सब को सहते हुये उसके लिये सबसे अहम बात यह हैं कि वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहे अपने रिश्तों की पकड को मजबूत बनाये रखे। और तभी विकास की प्रक्रिया आगे बठ सकेगी। वर्ना सब असंभव हैं।
यही बात मानवीय संबंधों में भ्ंाी विचारणिय हेंैअपनी मिटटी से जुडे़ रहें। विकास की इस प्रक्रिया में अपने रिश्तों को अपने साथ रखिये प्रकृति के साथ रहिये स्वयं को पं्रकृति के साथ का अवसर दें। और उससे ही संवार पायेगे आप अपनी आंतरिक सुन्दरता। भीतर की सुन्दरता को निखारिये।बाहरी सुन्दरता को संवारने में समय बरबाद करने के बदले आंतरिक सुन्दरता को संवारियंे।मानव के अंदर निहित गुण उसकी अच्छाईयां ही उसकी सच्ची सुन्दरता हैं

 

 


प्रेषक प्रभा पारीक

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ