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"वाह दोस्ती" समीक्षा (प्रभा पारीक)

 

prabha pareek 

3:37 PM (2 hours ago)




to me 






पुस्तक का शीर्षक - "वाह दोस्ती"
सम्पादक - डा० सविता स्याल
पृष्ट संख्या - 144
प्रकाशक - साहित्य संस्थान
गाज़ियाबाद ।

"वाह दोस्ती" अपने आपमें एक अनोखा संकलन है जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से 44 साहित्यकारों ने भाग लिया ।
माँ सरस्वती के आशीर्वाद के साथ यह अनोखा संकलन जो जीवन में खट्टे मीठे अनुभव देने वाले मित्रों को समर्पित हैं। यह संकलन समाज के जाने पहचाने एक महत्वपूर्ण रिश्ते की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है ।

 जिसमें लेखिका ने समाज के एक पवित्र व रक्त संबंध से परे मधुर रिश्ते को कड़ियों में बांधकर प्रस्तुत किया है। प्रसिद्ध कथाकार एवं वरिष्ठ संपादक मुकेश शर्मा जी के शब्दों में "प्रतिस्पर्धा के इस युग में स्वार्थी होते मानव का ध्यान इस अमूल्य रिश्ते पर केंद्रित करता एक सुंदर प्रयास है यह पुस्तक "।
 आदरणीय लक्ष्मी शंकर वाजपेई ने पुस्तक के लिए कहा "मेरे जीवन में प्यारे प्यारे दोस्त न होते तो निश्चय ही मैं वह नहीं बन पाता जो मैं आज हूं"उनका यह वाक्य पुस्तक की सार्थकता को प्रदर्शित करता है। वास्तव में यह संकलन समाज से मिले एक खूबसूरत, जाने पहचाने, महत्वपूर्ण रिश्ते की ओर हमारा ध्यान बटाता है ।साथ ही पुस्तक के प्रारंभिक पृष्ठों में सविता जी ने दोस्ती की सुंदर व्याख्या, इतिहास और दोस्ती के प्रकारों का सुंदर चित्रण किया है  साथ ही चेताया भी है कि दोस्ती के दुश्मन कौन है, हमें उनसे कैसे सावधान रहना है।
 प्रख्यात लेखिका शिवानी जी की चर्चित कहानी 'दो  सखियां 'से पुस्तक आरंभ होती है। पुस्तक की  प्रत्येक कहानी संदेश परक होने के साथ-साथ हमें बांधे रखने में सक्षम है। इस पुस्तक की कहानियां दोस्ती के नए रूपों को उजागर करती है।पृष्ठ दर पृष्ठ   दोस्ती के प्रति हमारी सोच और परिपक्व होती महसूस होती है। हमारी कल्पनाओं की सीमाओं से परे हमें नयेपन का एहसास कराती हैं। प्रत्येक रचना के अंत में दोस्ती का महत्व दर्शाते कुछ  अनमोल वचन  हमें  झकझोर देते हैं। पुस्तक की हर कहानी पढ़ने के बाद मैने महसूस किया कि मुझे मिले दोस्त ईश्वर का एक तोहफा है मेरे लिए।
मेरी नजर में डॉ सविता स्याल अपनी इस पुस्तक व उसके सफल प्रयास के लिए अभिनंदन की पात्र हैं।  पुस्तक के लिए कहानियों का चुनाव  विषय के  अनुकूल है। पुस्तक में कहानियों के अलावा कुछ  संस्मरण, व्यंग व आलेख हैं जो हमें हमारा बचपन याद दिलाते हैं ,गुदगुदा ते  हैं और  दिल को दिल से जोड़ते हैं । अंत में ऐसे मित्रों की तस्वीरें दी गई हैं जो जीवन के सुंदरतम अवस्था अर्थात बचपन से आज तक दोस्ती की डोर  थामें 'हैं'। बालों की सफेदी, चेहरे की झुर्रियां और झुकती कमर तक भी उन्होंने दोस्ती को  शिथिल नहीं होने दिया। कुछ मित्रों की मित्रता साठ वर्ष से भी पुरानी है। यह इस पुस्तक का विशेष आकर्षण है।एक उपयोगी पुस्तक के लिए बधाई सविता जी।

 प्रभा पारीक
भरूच,गुजरात
9427130007

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