Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन साथी

 

जीवन साथी  

घर का कोना कोना सुरभि की आवाज से गूंजता रहता थाl सभी की लाडली जो थी सुरभी। सुरभि पढ़ने में कुशाग्र, नृत्य संगीत में सबसे आगे रहने वाली युवती थी। इस युवा लड़की पर कॉलेज का हर लडका फिदा था। सभी मनचले सुरभि को निहारत आहें भरते थे पर एक दृढ़ व्यक्तित्व की स्वामिनी सुरभि के समक्ष कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी।
कॉलेज के किसी भी कार्यक्रम में यदि सुरभि हिस्सा लेती तो अन्य प्रतिभागी भी इस प्रतियोगिता का हिस्सा बनने को आतुर नजर आते थे । कॉलेज के पुरुष प्रोफेसर, महिला शिक्षकों की चाहेती थी सुरभि, वो अपने पिता की शानदार गाड़ी में कॉलेज आती थी। दिन भर उसका ड्राइवर मुकेश वहीं कॉलेज में गाड़ी में बैठा उसका इंतजार करता रहता। दोपहर के खाने के समय सुरभि अपने सहेलियों के साथ खाती, तब गाड़ी से अपना खाना लेकर कैंटीन में जाकर बैठ जाती। सुरभि का ड्राइवर मुकेश एक सीधा-साधा युवक था। जो ड्राइवर की नौकरी के साथ-साथ प्राइवेट पढ़ाई भी कर रहा था । वह विज्ञान विषय लेना चाहता था लेकिन प्राइवेट पढ़ाई में विज्ञान के प्रयोगिक विषय लेने का विकल्प न होने के कारण उसने गणित व अन्य विषय लिए थे। वह सुरभि से एक कक्षा पीछे था कभी-कभी कुछ विषय सुरभि भी उसे समझा देती थी अंग्रेजी विषय में के लिए तो वह सुरभि पर ही निर्भर रहता थाव सुरभि अपनी सहेलियों से नोट्स लाकर मुकेश को देती, मुकेश की पढ़ाई में लगन देखकर सुरभि भी प्रभावित थी।
परीक्षा के दिनों मे कॉलेज का एक छात्र शशांक सुरभि के जाने के समय गाड़ी के पास खड़ा अपने मोटरसाइकिल पर सुरभि का इंतजार करता। सुरभि के आने पर थोड़ी बहुत पढ़ाई की बात करता सवालों के जवाब मिलते ही अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट करके चला जाता। पिछले साल भी वह सुरभि के ही बैच में था पर उससे कभी सुरभि की बात नहीं हुई थी ।
परीक्षाएं समाप्त हो गईं छुट्टियों में सुरभि परिवार के साथ घूमने निकली। साथ में ड्राइवर मुकेश भी था। वह सुरभि का खूब ध्यान रखता। एक बार पहाड़ पर चढ़ते समय उसने सुरभि को गिरने से बचाया भी था। मजबूरी में उसने सुरभि की कमर को कसकर पकड़ था संभालने पर वह तुरंत वहां से झैंप कर हट गया था। उस समय सुरभि के मन मे उस नवयुवक के प्रति अलग से ही भाव उठे थे पर सुरभि ने अपने आप को संयमित रखा। अगले ही दिन जब होटल के लाॅन में पापा अपनी मीटिंग में चले गए, मम्मी अपनी बहनों के साथ व्यस्त थी तब सुरभि के सामने खड़े मुकेश से सुरभि ने पूछा था "क्या तुम्हें बैडमिंटन खेलना आता है"? मुकेश के "हां" में से हिलाते ही सुरभि ने एक रैकेट मुकेश को पकड़ाया और लोॅन में चले आए ।सुरभि की आशा के विपरीत मुकेश का खेल अच्छा था। उसने खुश होकर मुकेश की सराहना की ।अब तो वह लोग रोज ही दोपहर में बैडमिंटन खेलने लगे। कभी सुरभि बुरी तरह से हारने लगती तो मुकेश अपने आप ही उसे जीतने देता।
छुट्टियां पूरे होते ही सुरभि परिवार के साथ घर आ गई, कॉलेज खुलने में कुछ दिन शेष थे। इन बाकी के दिनों मे सुरभि को लग रह अब वह इन दो सप्ताह में क्या करेगी। वह समय कैसे बिताएगी। एक दिन शाम के समय उसके पास शशांक का फोन आया । सुरभि ने फोन उठाया और उधर से आवाज आई "कैसी हो सुरभि"? सुरभि ने जवाब दिया "ठीक है "कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद शशांक ने "बाय" कहकर फोन काट दिया था। सुरभि सोचने लगी इसे मेरा नंबर कैसे मिला होगा? दूसरे दिन फिर शाम के समय शशांक का फोन आया। इस बार उसके साथ उसकी क्लासमेट मिता ने भी बात की इस बार बात कुछ लंबी चली ,सुरभि को समझ आ गया कि शशांक ने मीता से ही उसका नंबर लिया होगा। शशांक अब करीब करीब रोज फोन करता। उसकी बातें दिलचस्प होती, हर तरह की बात उसे लुभाती। उसके बोलने का अंदाज प्रभावशाली था। शशांक एक दिन अपनी बड़ी सी गाड़ी लेकर उससे मिलने आया था। शशांक का परिचय अपने पापा मम्मी से करवाया ,कुछ देर बात करके शशांक चला गया। जाते-जाते कह गया कि "कल वह उसे अपने साथ लॉन्ग ड्राइव पर चलने के लिए लेने आएगा, तैयार रहना"। उसे दिन सुरभि शशांक के साथ दोपहर से शाम तक खूब घूमी, खाना खाया और घर आ गई ।
दो दिन बाद कॉलेज खुल गए थे सुरभि फिर पहले की तरह मुकेश के साथ गाड़ी में कॉलेज आने जाने लगी। मुकेश के साथ बैडमिंटन खेले बहुत दिन हो गए थे ।तब एक दिन सुरभि ने कॉलेज से आते समय मुकेश से कहा था घर चलकर फ्रेश होकर हम बैडमिंटन खेलेंगे। मुकेश को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई थी।उसी समय सुरभि के पापा भी ऑफिस से आए उन्होंने सुरभि को खेलते देखा तो वह भी कपड़े बदलकर आ गए। मम्मी भी बैडमिंटन अच्छा खेलना जानती थी। सुरभि के पापा ने सहज तौर पर कहा था "हम डबल्स खेलेंगे, तुम्हारी जोड़ी मुकेश के साथ और मेरी जोड़ी तो है ही तुम्हारी मां" न जाने क्यों सुरभि शर्म से लाल हो गई और मुकेश खुश नजर आ रहा था ।
इस तरह सुरभि का मुकेश के साथ तालमेल बनता चला गया था। उधर कॉलेज में भी शशांक के साथ सुरभि के नजदीकियां काफी बढ़ने लगी थीं। उस दिन आम दिनों की तरह सुरभि कॉलेज आई थी। अचानक मुकेश को फोन मिलाकर सुरभि के पापा को हार्ट अटैक आया है। उसे कहा गया 'तुम सुरभि को लेकर तुरंत अस्पताल पहुंचो' मुकेश ने सुरभि को फोन लगाया पर उसने नहीं उठाया, तब उसने अन्य छात्रों से आग्रह किया कि सुरभि या शशांक को कक्षा के बाहर बुलाकर एक बार यहां भेज दे। शशांक को मुकेश ने सारी बात बताइ शशांक ने उसे आश्वस्त किया और सुरभि को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठने के लिए कहा। घबराई हुई सुरभि ने मुकेश के साथ गाड़ी में ही जाने का मन बनाया। रास्ते में सुरभि सुबकती रही मुकेश उसे चुप कराता रहा ।अस्पताल के बाहर मुकेश ने सुरभि को सांत्वना देते हुए हिम्मत से काम लेने की सलाह दी। घबराई हुई सुरभि मुकेश से लिपटकर जोर से रो रही थी ।तब तक शशांक भी वहां पहुंच गया और उसने हाथ पकड़ कर सुरभि को मुकेश से अलग किया। सुरभि पिता के इलाज के लिए दिन-रात एक कर रही थी। मां के साथ मिलकर मुकेश सारा काम संभाल रहा था। शशांक के पिता के कारण अस्पताल का स्टाफ उसके पिता की अच्छी देखभाल कर रहा था। सुरभि के पिता का स्वास्थ्य थोड़ा ठीक होने लगा था कि अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और डॉक्टर के खूब परिश्रम के बावजूद भी वह नहीं बच पाए।
सुरभि पर तो जैसे गमों का पहाड़ टूट पड़ा मुकेश ने ऐसे समय में सुरभि का पूरा साथ दिया। पिता के देहांत के समय शशांक उसके साथ नहीं था उन दिनों में कॉलेज के किसी कार्यक्रम में व्यस्त था। मुकेश ने ऐसे कठिन समय में न केवल सुरभि को संभाला बल्कि मां को भी मुकेश की संभाल रहा था। सारे रिश्तेदारों को लाना ले जाना अन्य व्यवस्था में भी वह पूरे दिन लगा रहता। शाम को खाना खाने बैठता तो मां उसे खाना खिलाती ।इतने दिनों की परेशानी में मुकेश घर के सदस्य जैसा हो गया था। सुरभि थोड़ी नॉर्मल हुई ,कॉलेज वापस जाने लगी। शशांक के साथ में उठती बैठी पर अब मैं उदास रहने लगी थी। शशांक और सुरभि दिन भर साथ रहते हैं कॉलेज में सब उनके विषय में बातें करने लगे थे। शशांक ने सुना भी पर उसने कोई विरोध नहीं किया छात्रों ने इस 'मौन स्वीकृति लक्ष्णम' समझा सुरभि को जब इस बात का पता चला तो वह सक पका गई। उसने शशांक से दूरी बनाने का मन बना लिया था पर शशांक तो ऐसा सोच भी नहीं पा रहा था। शशांक घर आता मां से मिलने।
कॉलेज का अंतिम वर्ष था। सभी आगे क्या-क्या करना है यह सोच रहे थे। शशांक को पिताजी का व्यवसाय संभालना था। इसलिए वह किसी तैयारी में व्यस्त नहीं था। एक दिन सुरभि ने उससे पूछा "तुम आगे क्या करना चाहते हो"? तब शशांक ने कहा था पिता के पैसों पर ऐश सुरभि ने उसे समझाया था। "अच्छे भले दिमाग वाले छात्र रहे हो आगे कुछ बनने की क्यों नहीं सोचते" शशांक ने तपाक से कहा था क्यों पढ़ूं पैसा पिता के पास है लड़की मैंने ढूंढ ली है। "सुरभि ने पूछा अच्छा जी कौन है? उसने सुरभि को बाहों में लेते हुए कहा था "तुम" सुरभि ने "धत्त" कहा और शर्मा गई। उसने भी विरोध नहीं किया शशांक ने तब इसे सुरभि की हां ही माना था। एक दिन बात बात में सुरभि ने शशांक से कहा भी था 'जब तक वह कुछ बन नहीं जाती वह विवाह नहीं करेगी' शशांक को उसकी यह बात याद थी इसलिए उसने आगे कुछ नहीं किया।
सुरभि ने एम बी ए में एडमिशन लिया। अगले वर्ष मुकेश ने गणित ऑनर्स के साथ एम ए में एडमिशन लिया और प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने लगा। सुरभि के घर में बने बाहर कमरे में रहता। अपना खाना खुद बनाता और ईमानदारी से पढता। उसके परिवार की सेवा तो करता ही था अपनी कमाई से अपने माता-पिता का इलाज भी करवा रहा था। उधर आज छः महीने बाद शशांक अमेरिका घूम कर सुरभि के लिए ढेर सारे उपहार लेकर आया था। वह उस दिन घर आया। शशांक इंतजार कर रहा था कि सुरभि का एम बी ए कब पूरा होता है और वह विवाह की बात करें। क्योंकि अगले महीने वह फिर से 6 महीने घूमने मौज मस्ती के लिए ऑस्ट्रेलिया जाने वाला था।
इधर सुरभि का अब एक अच्छी कंपनी में चयन हो गया था। सुरभि के एम बी,ए पूरा होने की खुशी में सुरभि के प्यार में पागल शशांक ने एक बड़ी पार्टी दी थी। इसी वर्ष मुकेश ने प्रतियोगिता परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर ली थी। अब वह इंटरव्यू की तैयारी कर रहा था। शशांक की पार्टी में कॉलेज के सभी मित्र मिले। उसे दिन सुरभि को एहसास हुआ कि शशांक ने यह पार्टी दोनों के संबंधों को स्पष्ट करने व मित्रों के सामने सुरभि को प्रपोज करने के लिए दी थी। अचानक आये इस प्रस्ताव को सुरभि ने तुरंत स्वीकार नहीं किया। शशांक से सुरभि ने समय मांगा था। शशांक उस दिन बहुत मायूस हुआ। उसे तो जैसे अपना जमा जमाया खेल बिगड़ा सा लगा। वह सिर्फ सुरभि को इतना ही पूछ पाया था "क्या कमी है सुरभि तुम्हारे प्रति मेरे प्यार में" सुरभि ने कहा था शशांक मै शांत दिमाग से विचार करना चाहती हूं।
मुकेश उससे प्यार करता है कि नहीं यह तो सुरभि नहीं जानती लेकिन वह मन ही मन मुकेश को चाहने लगी थी ।सुरभि मुकेश के कठोर परिश्रम उसकी निष्ठा उसके स्वभाव से परिचित थी। इधर सुरभि ने एक दो बार शशांक को अपने माता-पिता से बात करते हुए भी सुना था ।उसका अपने माता-पिता के प्रति रवैया लापरवाही भरा था। वह सिर्फ पिता के पैसों पर ही मजे कर रहा था। कुशाग्र होते हुए भी पढ़ाई से दूर होता जा रहा था। यह बात सुरभि को पसंद नहीं आ रही थी। पिता के व्यवसाय में वह जुड़कर बंधना भी नहीं चाहता था। सुरभि को समझ नहीं आ रहा था आखिर शशांक का भविष्य क्या? ऐसे युवक से विवाह करके वह अपना सम्मान भी खोना नहीं चाहती थी। वैसे शशांक को लेकर चिंतित भी थी।
मुकेश प्रतियोगिता परीक्षा के बाद इंटरव्यू में अच्छे अंकों से सफल रहा उसे पुलिस विभाग में अच्छा पद मिला। उसकी सफलता पर मां और सुरभि दोनौ खुश थै।पद भार संभालने के कुछ समय बाद एक दिन दोपहर के समय उसके हाथ में एक लिफाफा देकर मुकेश जल्दी से कमरे के बाहर चला गया। लिफाफे में सुंदर लिखावट के साथ शालीनता भरा पत्र था। जिसमें मुकेश ने झिझकते हुए अपने प्रेम का इजहार करते हुए विवाह का प्रस्ताव भी रखा था। दिल को छू लेने वाली शालीन भाषा जिसे पढ़कर सुरभि गदगद थी। मुकेश ने एक पंक्ति में लिखा था कि वह जानता है शशांक तुम्हे बहुत प्यार करता है। अब निर्णय उसे करना है।
इसी उलझन में सुरभि ने मां को सब कुछ बताया और आगे कदम बढ़ाने से पहले सलाह लेना उचित समझा। मां का कहना था कि शशांक अपने सामाजिक आर्थिक स्तर का है। सुरभि का तर्क था नौकरी के बाद मुकेश का सामाजिक आर्थिक स्तर उससे भी अच्छा हो जाएगा ।शशांक स्मार्ट है। आज के युग का लड़का है। मुकेश सब सीख जाएगा पद प्रतिष्ठा ही उसका व्यक्तित्व होगा। ऐसा सुरभि का तर्क था इस तरह उस रात की सुबह एक निर्णय के साथ हुई कि सुरभि अपना जीवनसाथी मुकेश को ही चुनेगी। चाहे शशांक उसे कितना भी चाहता हो वह दिल से मुकेश को चाहती है ।उसका सम्मान करती है और जिस व्यक्ति का वह सम्मान नहीं करती उसे वह अपना जीवन साथी नहीं बना सकती। मां के विरोध के बावजूद उसने शशांक को फोन पर अपना निर्णय सुना दिया जिसे सुनकर शशांक स्तब्ध था पर सुरभि अपने निर्णय पर प्रसन्न थीl


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