पत्थर की दीवार
जब घर बनाया था तब दौनों भाईयों में बहुत प्यार था। एकदम पास पास ही घर थे दोनों के सोचा था। पास पास रहकर सेवा निवृति का समय चैन से गुजर जायेगा। एक दूसरे का संबल बना रहेगा। बडे भाई ने तो अपना जमा जमाया व्यापार तक बडे शहर से हटा कर छोटे भाई के शहर में जमा लिया था।
ये भी उनके लिये एक सुखद संयोग ही था कि बडे़ भाईया ने छोटे भाई के बगल वाला पुराना मकान खरीद लिया था। पुराने मकान को तुडवाकर भैया ने एक बडी कोढी बनवा ली। कोढी बनवाते समय भैया सदा कहते सारा परिवार जब इक्कठा होगा तो जगह कम नहीं पड़़नी चाहिये।
छोटे की पत्नी को अब अपना मकान और भी छोटा लगने लगा था। या यूं कहें ईट गारे के इस ढेर ने प्यार के रिश्तों में अपनी रेत की किर किर मिलानी शुरू कर दी।
दोनौं भईयों ने एक ही नौकर को रखा जो बारी बारी से दोनों घरों में काम करता। छोटी बहु बडा दिल रखती नौकर का काम इसी तरह चल रहा था। एक दिन पडौस की एक महिला ने स्वभाव वश दोनों बहुओं के समक्ष दोनों घरों, उनके आर्थिक स्तर के विषय में कुछ खुलकर कह दिया। जिसे दोनों बहुओं ने एक साथ चुप करवा दिया। पर दिल पर लगा कांटा एैसा गडा की बीच में दीवार चुनवाने के बाद भी चुभन बनकर सालने लगा। भाईयों के व्यवहार में विशेष परिवर्तन नहीं आया था। स्त्रियों का व्यवहार आपस में बदलने लगा था।
भैया की बडी गाडी अब बीच की जगह के स्थान पर बाहर खडी रहने लगी। छोटे की गाडी तो अभी कल ही आई थी। उसे भी अपनी नई गाडी बाहर इस तरह रखना मंजूर नहीं था। परिणाम स्वरूप भाईयों ने एक आदमी बुलाकर बीच की दीवार तुडवाने की सोची। बहुएं अपनी स्वीकृति दें तब बात बने।
आपस में कोई झगडा तो था नहीं बस वो अद्रश्य कांटा ही था जो संबंधो में दरार पैदा कर रहा था। दोनो भाईयों की संताने पढने में अच्छी थीं। एक दूसरे को मदद करती साथ स्कूल जाती, मां को इसमें कोई आपत्ती भी नहीं थी।
दिवार के उपर दोनों परिवारों ने अपने अपने कपडे़ चादरें डालना शुरू किया। दोनो परिवार शाम सवेर बाहर बैठ कर चाय पीते। सब अपने अपने एकल परिवार के साथ होते संयुक्त परिवार के बदले अलग रहकर खुश नजर आते। भाईयों की समझदारी के कारण कोई विवाद नहीं होता था।
इस वर्ष बहुत गर्मी पड़ी एक अंडर ग्राउन्ड टैन्क बनवाने की सख्त जरूरत महसूस हुई। जगह तो वही थी, दोनों घरों के बीच की जगह। इसलिये ये निर्णय हुआ कि बीच की जगह में पानी का टैन्क बनेगा ओर दोनेां घरों में कनैक्शन हो जायेगा। खर्चा भी आधा आधा हो जायेगा। अंत में पानी, पत्थर की दीवार को तोड़ने में कामयाब हो गया। पानी का स्वभाव जो मिलाना ठहरा।
प्रभा पारीक भरूच गुजरात
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