Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

पहाड़

 

 (एक)

मैंने पहाड़ को छुआ

आत्मविश्वास से भरे हैं उसके अंग

सिद्धांत की तरह सख्त

प्रतिरोधी कार्रवाई में

तैयार हर वक़्त

हाथों में लिए शाल-वृक्ष

पहाड़ धो रहा है

अपनी एड़ियाँ नदी में

बिबाइयां बनी हैं बसेरा

रंगीन मछलियों का

पहाड़ थामे है

अपनी चोटी पर पूरा आकाश

आँधियों के आँचल

पहाड़ के धुमैले काँख में फँसे हैं

एक नया तूफ़ान उतर रहा है पहाड़ से

वह आदमी की

छातियों में चाहता है बसेरा

पहाड़ से उतरता तूफान

पूरी उम्मीद के साथ

मुड़कर देखता है कभी चोटी को

कभी चोटी पर टिके आकाश को



पहाड़ (दो)

पहाड़ बच्चों को

दिखाता है चाँद

पहाड़ बच्चों को दिखाता है -

अपने कंधों पर पाँव-पैदल चलते बादल

पहाड़ पर

सबसे पहले पहुँचते हैं बच्चों के सपने

फिर सपने

बादलों पर छलाँग लगा

चाँद पर चढ़ जाते हैं

इशारे से

बड़े होते बच्चों को पहाड़ बुलाता है

वह उलीचना चाहता है उनकी

आँखों में मजबूत इरादे

बाहों पर मानसून को दुलारते पहाड़ को देख

बड़े बच्चों को ऐसा लगता है

जैसे समंदर छू रहा है आसमान



पहाड़ (तीन)

मैं जहाँ भी जाता हूँ

पहाड़ जाता है

मैं जहाँ भी रहता हूँ

पहाड़ बाहर कम और अन्दर ज्यादा रहता है

अन्दर के पहाड़ के नीचे भी

बहती है एक नदी

जैसे ही नदी बनती है कोई इच्छा

पहाड़ इरादा बनकर खड़ा हो जाता है



पहाड़ (चार)

मैं नहीं गया हूँ श्रीकाकुलम

लेकिन पहाड़ मुझे श्रीकाकुलम जैसा लगता है

हाँ, मैं गया हूँ भोजपुर

भोजपुर मुझे ठीक पहाड़ जैसा लगा

एक पहाड़ की यात्रा

समाप्त होते ही

सामने आ जाता है दूसरा पहाड़

पिछली यात्रा ही

बनती है अगले पहाड़ की

चढ़ाई का सोपान

दूसरा पहाड़ है भोजपुर

तो निश्चित ही

पहला पहाड़ होगा श्रीकाकुलम

मैं नहीं गया हूँ श्रीकाकुलम

लेकिन

पहाड़ मुझे श्रीकाकुलम जैसा लगता है



पहाड़ (पाँच)

पहाड़ झाँकता है नदी के जल में

बिम्ब बनता है पहाड़ का

हल्के तरंगों पर भी हिलने लगता है पहाड़ का बिम्ब

लेकिन

पहाड़ है कि जरा भी नहीं हिलता

कल्पना की दुनिया में

हू - बहू नहीं उतरना चाहता है पहाड़

सामने के पहाड़ पर

कभी रही होंगी परियाँ

उन्हें देख कवियों के मन में

बजता होगा कभी मृदंग - मुचरंग

अब रहती है इस पर

पहाड़ की बेटी रेजिना किस्कू

सरकारी वन-रक्षकों ने

जब उसे छेड़ने की कोशिश की

पहाड़ ने ही दिया बेटी के हाथों में

नुकीला धारदार पत्थर




पहाड़ (छः)

पहाड़ को आँखों में

उलीचा नहीं जा सकता

उसे करना पड़ता है प्रतिष्ठित पुतलियों पर

फिर तो हमारे जीवन के अवसाद को

झेलने के लिए तैय्यार हो जाता है पहाड़

वह कभी नहीं लौटाता है दोस्तों को

खाली हाथ

अपनी कमर को

नम्र बनाकर जब

पहाड़ के घुटनों तक पहुंचा

तो पाया कि

कविता में प्रवेश के लिए

जिद्द मचा रही थी नदी

पहाड़ पर कमर झुकाकर

लिखी गयी नदी की कविता में

नदी की तरह थरथराहट नहीं थी

कविता को ही नहीं

धरती को भी

कंपने से बचाता है पहाड़


पहाड़ (सात)

पहाड़ की तलहटी में लेटा

मैं देखता हूँ पहाड़

धरती के धागे से

एक पहाड़ मिलते हैं दूसरे पहाड़ से

जबकि

पहाड़ के पुल के सहारे

मिल रहा है धरती से आकाश

तलहटी में लेटा

पहाड़ से आती बयार को

फेफड़े में भरता हुआ सोचता हूँ कि

समुद्र जब भी लेगा करवट

प्लावन होगी धरती

फिर भी बचा रहेगा पहाड़

बची रहेगी पहाड़ भर धरती समुद्र के अन्दर

पहाड़ पर बचा रहेगा देवदारु

देवदारु के कपोल पर

लिखी जाएगी कविता की प्रथम - पंक्ति

फिर पहाड़ पर आएगा बसंत

आएगी एक कोयल और

लगाएगी पहाड़ का चक्कर

आकाश-नक्षत्र गायेंगे पहाड़ की

गरिमा के गीत

मनाया जायेगा प्रथम-सृजन का

उल्लास-पर्व

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