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गीत चतुष्टय

 

प्रभुदयाल मिश्र

 

 

 

अनुत्तरित प्रश्न

 

 

जो नहीं मैं हुआ शेष वह
हल सभी प्रश्न को दे दिए
मन्त्र निष्फल, निरर्थक हुए
शब्द के अर्थ मेरे लिए ।

 

 

हर पतन ने गगन को छुआ
सांस का विश्व ऐसा बसा
कुछ करूंगा, किया पर नहीं
लालसा पर रुदन आ हंसा
वक्त के ठीक इंतजार में
हम ठगे से खडे रह गये

 

 

स्वप्न संसार में सृष्टि स्वप्निल, नहीं
मानकर मैं चला सत्य की खोज में
सूर्य की रौेशनी में न देखा शहर
दामिनी से ठगा मेघ की मौज में
दृष्टि में, आंख में, देख कर भी जिसे
पास जो, दूर है, मानकर ही जिए....

 

 

ब्रह्म सच, विश्व भ्रम
सुन लिया, पर गुना है नहीं
तुम वही, वह यही,
सब कहीं है वही, यह सही
शून्य में पर लिखी थी गई जीवनी
और चित्रित कथानक सजे हाशिये !
मन्त्र

 

 

दूर धरती नयी, नित्य दुनियां अलग
देखता मैं रहा आपको, शुक्रिया
एक ओझल रहा ही हूं मैं
मृत्यु की एक जीवन-क्रिया
विष, अमृत पिया है किसे यह पता
आप चाहें स्वयं ज्ञात कर लीजिये ।
मन्त्र

 

 

मैं था, मैं रहूंगा, नहीं इसलिए
हो सका, जोकि हूं
पास काफी नमी के पहंुच
दंश अभिव्यक्ति के बस सहूंुु
शेष कहने ही की आंच में
उड़ गए सब कथन दूधिए
मन्त्र निष्फल, निरर्थक हुए
शब्द के अर्थ मेरे लिए ।

 

 

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