Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आस्था की शिला

 

 

01. ओस के भाग
गले मिली पंखुरी
धन्य ये साथ ।
☆☆☆
02. भोर का रूप
मुस्कान बाँट रही
कोमल धूप ।
☆☆☆
03. खिले सुमन
बाँचती चली हवा
मृदु सुगंध ।
☆☆☆
04. धरा-आकाश
कोहरे की चादर
कोमल पाश ।
☆☆☆
05. कुंज की कली
हवा संग डोलती
हुई बिलासी ।
☆☆☆
06. आस्था की शिला
शालिग्राम बनती
धन्य गण्डकी ।
☆☆☆
07. मन गुलाब
झुलसती धूप ने
जलाये ख्वाब ।
☆☆☆
08. लू की तपन
झुलस रही धरा
चाह सावन ।
☆☆☆
09. रवि कृषक
बोये मेघ के बीज
वर्षा फसल ।
☆☆☆
10. चाँद से बात
गिनते रहे तारे
कटी न रात ।
☆☆☆☆☆

 


✍????????प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

 

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