01. ओस के भाग
गले मिली पंखुरी
धन्य ये साथ ।
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02. भोर का रूप
मुस्कान बाँट रही
कोमल धूप ।
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03. खिले सुमन
बाँचती चली हवा
मृदु सुगंध ।
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04. धरा-आकाश
कोहरे की चादर
कोमल पाश ।
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05. कुंज की कली
हवा संग डोलती
हुई बिलासी ।
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06. आस्था की शिला
शालिग्राम बनती
धन्य गण्डकी ।
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07. मन गुलाब
झुलसती धूप ने
जलाये ख्वाब ।
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08. लू की तपन
झुलस रही धरा
चाह सावन ।
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09. रवि कृषक
बोये मेघ के बीज
वर्षा फसल ।
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10. चाँद से बात
गिनते रहे तारे
कटी न रात ।
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✍????????प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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