Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहे निर्झर

 

शैल खण्डों में
जाग उठी चेतना
आस्था से प्रीत
नयन थे तृषित
प्राण व्याकुल
गीत कलकल के
गाते सस्वर
निश्चल व निश्छल
बह चले निर्झर ।
☆☆☆☆☆☆☆

 

 

□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

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