Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेटी

 

 

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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हाइकु
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01.
नन्हीं सी कली
फूल बन बिटिया
महका चली ।
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02.
साँस है बेटी
मखमली नर्म सी
घास है बेटी ।
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03.
माता की छाया
पिता का अभिमान
बेटी है शान ।
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04.
कोख से बची
दहेज से बचेगी
गर पढ़ेगी ।
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05.
देर जो हुई
सहमी सी गोरैया
घर को लौटी।
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06.
नर न छलो
गर्भ की कन्याओं को
मत संहारो ।
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07.
फूल ना होंगे
कैसे आएगी बहू ?
फल पाओगे ।
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08.
जड़ सिंचती
पीहर आती बेटी
ओस की लड़ी ।
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