प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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01. नेह उद्यान
भिले जब मुस्कान
मिटी थकान
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02.
शर्म की बात
मानव श्रम जहाँ
रोता अनाथ ।
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03.
मानव जाति
निर्मम है उसकी
जीवनी शक्ति ।
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04.
ऊँची चट्टान
इंसानियत पैरों
ढेरों थकान ।
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05.
टपके ओस
प्रकृति बिखेर दी
नायाब मोती ।
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06.
जन्म से मृत्यु
ढोती परमायु को
रिसती आयु ।
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07.
हाथों से छूटा
नभ पर लटका
चाँद गुब्बारा ।
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