Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दर्द के कच्चे धागे

 

01.
जीवन डोर
रोशनी की तलाश
सांझ से भोर ।
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02.
कर्म के चोर
किस्मत के ऊपर
थोपते दोष ।
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03.
होते सपने
देर नहीं लगते
उन्हें टूटने ।
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04.
गले मिलते
बच कर रहना
काटते गले ।
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05.
मोम न बनो
पिघल ही जाओगे
इस "दीप" से ।
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06.
वे हँस देते
दर्द के कच्चे धागे
आँसू पिरोते ।
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- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

 

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