Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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धुएँ की लकीर

 

01.
मधुर प्रीत
हवा छेड़ी रात को
गूँजता गीत ।
-----0----
02.
प्रीत तुम्हारी
धुएँ की लकीर सी
बनी व मिटी ।
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03.
प्रीत जोड़ती
नफरत की हवा
तोड़ती डाली ।
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04.
बहता पानी
जीवन की संगिनी
नाव पुरानी ।
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- प्रदीप कुमार दाश "दीप

 

 

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