01. करारी धूप
कड़कने लगी है
री ! गर्मी आई ।
☆☆☆
02. धूप से धरा
दरकने लगी है
बढ़ी जो ताप ।
☆☆☆
03. सूर्य की आग
ग्रीष्म की प्रखरता
बढ़े संताप ।
☆☆☆
04. गर्मी प्रखर
प्रणय से खिलता
गुलमोहर ।
☆☆☆
05. धूप की आँच
देता अमलतास
पंछी को छाँह ।
☆☆☆
06. रवि धधका
धूप में तप कर
झुलसी धरा ।
☆☆☆
07. मन गुलाब
झुलसती धूप ने
जलाये ख्वाब ।
☆☆☆
08. मीठा सा जल
ले आया तरबूज
मन शीतल ।
☆☆☆
09. जेठ-बैशाख
जल की पूजा करें
शीतल ख्वाब ।
☆☆☆
10. लू की तपन
झुलस रही धरा
चाह सावन ।
☆☆☆☆☆
□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY