प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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हर्षित धरा
01.
हिम जो लाया
कोहरे की रजाई
धरा ओढ़ ली ।
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02.
काली रजनी
सन्नाटे सुना रहे
मौन दास्तान ।
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03.
अज्ञान मेघ
गरजते अधिक
बरसे कम ।
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04.
भोर की बेला
सेहरा बाँध सूर्य
निकला दूल्हा ।
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05.
एकांत मन
रच रहा हाइकु
प्रकृति संग ।
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06.
नभ के भाल
बादल का टूकड़ा
काजल टीका ।
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07.
पीला सूरज
हरियाली बाँटता
हर्षित धरा ।
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