Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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झरते पत्ते

 

 

01.
झरते पत्ते
गीत गाते विदा के
सच रो पड़े ।
02.
नाचती गातीं
धरा उतर गयीं
वर्षा की बूँदें ।
03.
सिसका नभ
टपके टुप्प अश्रु
थामी पत्तियाँ ।
04.
डालियाँ रूठीं
सूखी पत्ती रो पड़ी
विदा की घड़ी ।
05.
पीड़ा बताने
झाग उगल रही
व्यथा की नदी ।
06.
फटते मेघ
उगल रही झाग
गुस्से में नदी ।
07.
झरे निर्झर
गाते वे झर-झर
गिरि-गौरव ।
08.
अंकुर फूटे
ऊँचाइयों की अब
स्वप्न देखते ।
09.
बूढ़ा आँगन
बँटवारे में रोयी
नन्हीं कलम ।
10 .
यही जीवन
हँसी खुशी क्रंदन
नव स्पंदन ।
0
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प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

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