Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन यात्रा

 

 

jeevan

 

 

 

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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जीवन यात्रा
01.
जीवन यात्रा
मुसाफिर अकेले
पथ पे काँटे ।
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02.
कौन बेदाग
सूरज में है आग
चंदा में दाग ।
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03.
भावों के रंग
कहीं हास्य व्यंग्य है
कहीं क्रंदन ।
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04.
मादक क्रीड़ा
हृदय हिला देती हृ
प्रेम की पीड़ा ।
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05.
ढूँढा ईश्वर
मंदिर व मस्जिद
दिल में ढूँढ ।
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06.
काट देता है
रिश्वत तलवार
विधि के हाथ ।
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07.
दादी बूढ़िया
चिपकी है द्वार में
मानो वो ताला ।
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08.
कानूनी घोड़े
जिधर बिछे पैसे
उधर दौड़े ।
09.
स्वार्थी संसार
भव के सागर में
पानी अपार ।
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10.
कल की रानी
आज विधवा बनी
कोख भी सूनी ।
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11.
सबसे अच्छी
वर्तमान की घड़ी
साथ चलती ।
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12.
वन के फूल
सेजों पे मुरझाए
काँटों में खिले ।
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13.
जीना न जीना
जो मर कर जीए
जीवन जीना ।
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14.
अहं के घेरे
वैभव जगत में
दुःखों के डेरे ।
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15.
काल के चक्र
कल केवल बीते
कभी न लौटे ।
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16.
बात पते की
सुनना तो सबकी
करो मन की ।
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17.
लिखते रहे
जीवन भर पुरे
कोरे न भरे ।
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18.
कहाँ बरसे
गरजना जानते
सिंधु व मेघ ।
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19.
सिंधु में सीपी
स्वाति बिंदू की आश
रहती प्यासी ।
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20.
पथ की बाधा
तितली के पर या
मोम बंधन ।
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21.
कुकुरमुत्ता
सुबह का सूरज
शाम का चाँद ।
22.
चाँदनी रात
चाँद चोर के लिए
देता पहरा ।
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23.
पहरा देता
अटल हिमालय
बना रक्षक।
24.
देना चाहता
मुट्ठी में लिए धूप
सूर्य भी सुख ।
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25.
मलय गिरि
वाँचता परिमल
लूटता नभ ।
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