प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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01.
स्वाभिमान भी
ठहरा समर्पण
नारी जीवन ।
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02.
बसाते रहे
सपनों की दूनिया
बसी क्यों नहीं ।
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03.
रख पाऊँ मैं
नहीं मुझमें धीर
आँखों के नीर ।
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04.
हल्दी का रंग
परदेशी का संग
मेहंदी मन ।
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05.
लिखी वेदना
हृदय पट पर
धो दिये आँसू ।
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06.
नारी का धर्म
ओढ़ कर चलना
गहना शर्म ।
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07.
व्यथा की कथा
दर्द ही उभरते
खोलो न गाँठें ।
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08.
सागर सुता
सीपी रखी सहेज
किमती मुक्ता ।
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09.
नभ को देखी
बिन पंख के पाखी
सिसक उठी ।
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10.
कैद है पाखी
किस्मत को अपनी
रही कोसती ।
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