Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माटी की गंध

 

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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हाइकु
01.
माटी की गंध
महक उठी धरा
सौंधी सुगंध ।
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02.
माटी का तन
तप कर निखरा
कंचन मन ।
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03.
मिट्टी के तन
पानी के बुलबुले
यही जीवन ।
04.
मिट्टी के घट
रूप सँवर गये
अग्नि में तप ।
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05.
चाक पे बैठी
कुम्हार हाथों मिट्टी
आकार पाती ।
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06.
चाक पे बैठी
माटी गीत सुनाती
आकार लेती ।
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07.
माटी के तन
आग में तप कर
निखरे मन ।
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-प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

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