Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुस्काती धरा

 

01.
तारे अनेक
एक में रखे जाओ
शून्य अनेक ।
---0---
02.
जूही को देखा
देखता रहा मन
वो शरमाई ।
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03.
सदा ही जूही
प्रिय राह जोहती
आँसू बहाती ।
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04.
मौन गगन
करता आमंत्रण
झंकृत मन ।
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05.
व्यथा बताने
शब्द हो गये बौने
किसे बताएँ ।
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06.
हँसाता हमें
सुनहरा सूरज
रोते क्यों हम ?
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07.
अग्नि परीक्षा
देती आज भी नारी
हाय.. लाचारी ।
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08.
पानी बरसे
मेघ आलिंगन से
मुस्काती धरा ।
---00---
--प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

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